एटीएस कॉलोनी में सरकारी जमीन पर अवैध निर्माण, एमडीडीए ने दिए जांच के आदेश
देहरादून, 3 अगस्त 2025 – उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में बिल्डरों की दबंगई दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। सहस्रधारा रोड स्थित एटीएस कॉलोनी में बिल्डर ने नगर निगम की कीमती भूमि पर कब्जा कर अवैध निर्माण खड़ा कर लिया। जब इस अवैध कब्जे की शिकायत पर नगर निगम की टीम स्थल पर पहुंची, तो बिल्डर ने सचिव स्तर के अधिकारी का नाम लेकर उन्हें धमकाया और टीम को बैरंग लौटा दिया।
क्या है मामला?
सहस्रधारा रोड स्थित एटीएस कॉलोनी में बिल्डर ने नगर निगम की लगभग 1250 वर्गमीटर भूमि पर कब्जा कर लिया है। इसके बाद फर्जी तथ्यों के आधार पर नक्शे पास करा लिए गए और निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया।
शनिवार दोपहर को नगर निगम की निरीक्षक (भूमि) सुधा यादव, एक लेखपाल और पुलिस कर्मी के साथ जमीन की माप के लिए मौके पर पहुंचीं। लेकिन बिल्डर ने टीम को रोकते हुए कहा कि “इस मामले की फाइल तो सचिव के पास है, अब कौन सी जांच करनी है?” इससे पहले कि टीम काम शुरू करती, उसे वहां से लौटना पड़ा।
एमडीडीए ने शुरू की जांच
एटीएस कॉलोनी के निवासियों ने इस मामले की शिकायत एमडीडीए के उपाध्यक्ष बंशीधर तिवारी से की। उन्होंने बताया कि बिल्डर ने दो इमारतें बनाई हैं, जिनमें से एक का रास्ता गलत ढंग से दर्शाया गया है और दूसरी बिना वैध रास्ते के बनाई जा रही है।
उपाध्यक्ष ने तत्काल प्रभाव से जांच के आदेश जारी करते हुए संबंधित अभियंताओं को नक्शों और स्थल निरीक्षण के आधार पर रिपोर्ट सौंपने को कहा है।
जमीन हस्तांतरण का ‘खेल’
इस विवाद की जड़ें वर्ष 2023-24 से जुड़ी हैं, जब बिल्डर ने नगर निगम की 3800 वर्गमीटर भूमि में से 1250 वर्गमीटर जमीन के हस्तांतरण का प्रस्ताव पेश किया था। बदले में जो भूमि निगम को देने की बात हुई, वह ढांग, साल के पेड़ों से घिरी और बंजर है।
- एटीएस कॉलोनी की भूमि का सर्किल रेट: ₹75,000/वर्गगज
- प्रस्तावित बदली जमीन का रेट: ₹26,000 – ₹45,000/वर्गगज
इसमें नगर निगम और तहसील कार्यालय की बड़ी चूकें भी उजागर हुईं क्योंकि बिना ठोस तथ्यों और सक्षम संस्तुति के प्रस्ताव शासन को भेजा गया था। मामला अब विवाद के चलते लंबित है।
सुप्रीम कोर्ट से जुड़ा गोल्डन फॉरेस्ट मामला
जिस जमीन पर कब्जा किया गया है, वह गोल्डन फॉरेस्ट लिमिटेड की संपत्ति है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इन संपत्तियों की नीलामी होनी है। इस भूमि को फिलहाल निगम के पास सार्वजनिक उपयोग (पार्क आदि) के लिए सौंपा गया था, लेकिन निजी बिल्डर को हस्तांतरित करने की कोशिश पर सवाल उठ रहे हैं।
अब आगे क्या?
नगर निगम और एमडीडीए दोनों के अधिकारियों के सामने अब सवाल यह है कि:
- किस अनुमति के तहत बिल्डर को यह भूमि दी गई?
- सचिव स्तर पर अगर मामला लंबित है, तो नगर निगम की टीम को काम से क्यों रोका गया?
- क्या इस अवैध निर्माण में राजनीतिक या प्रशासनिक संरक्षण है?
निष्कर्ष:
देहरादून जैसे शहर में जहां जमीन की कीमतें आसमान छू रही हैं, वहां नगर निगम की आंखों के सामने सरकारी भूमि पर कब्जा कर लिया जाना प्रशासनिक उदासीनता को दर्शाता है। इस मामले में त्वरित जांच, जिम्मेदारों की पहचान और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई समय की मांग है।
क्या बिल्डर की इस दबंगई पर प्रशासन लगाम लगा पाएगा या यह मामला भी फाइलों में दबकर रह जाएगा?
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