BREAKING

शिक्षकों की चुनावी ड्यूटी से हिली उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था, 10 हजार शिक्षक मतदाता सूची पुनरीक्षण में तैनात, पहले से ही खाली हैं 12 हजार से अधिक पद

देहरादून। उत्तराखंड में वर्ष 2027 के विधानसभा चुनावों को लेकर तैयारियों का दौर शुरू हो चुका है, लेकिन इस तैयारी का सीधा असर अब राज्य की शिक्षा व्यवस्था पर पड़ता दिख रहा है। मतदाता सूची पुनरीक्षण कार्य के लिए प्रदेश के 10 हजार से अधिक शिक्षकों को निर्वाचन ड्यूटी में लगाया गया है। इस फैसले से शिक्षक संगठन खासे नाराज़ हैं और इसे शिक्षा व्यवस्था के लिए खतरनाक करार दे रहे हैं।

पहले से ही 12,318 पद रिक्त, अब और बिगड़ेगी स्थिति

प्रदेश में पहले ही शिक्षकों और प्रधानाचार्यों के 12,318 पद खाली हैं। इनमें बेसिक शिक्षकों के 2109, हेडमास्टर के 496, उच्च प्राथमिक स्तर पर 733, एलटी ग्रेड शिक्षकों के 3055, प्रवक्ता के 4745 और इंटर कालेजों में प्रधानाचार्य के 1180 पद शामिल हैं।

इसके अलावा 2501 प्राथमिक विद्यालय ऐसे हैं जहां सिर्फ एक ही शिक्षक तैनात है। ऐसे में 10 हजार और शिक्षकों को बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर), ईआरओ (निर्वाचन रजिस्ट्रेशन अधिकारी), एईआरओ (सहायक निर्वाचन अधिकारी) और सुपरवाइजर की ड्यूटी में लगाना स्थिति को और अधिक गंभीर बना सकता है।

एक से डेढ़ साल तक रहेंगे स्कूलों से बाहर

शिक्षकों की तैनाती केवल कुछ दिनों के लिए नहीं है। कई शिक्षक आने वाले डेढ़ साल तक मतदाता सूची पुनरीक्षण, प्रशिक्षण और विभिन्न चरणों की निर्वाचन प्रक्रिया में व्यस्त रहेंगे। इससे विद्यार्थियों की पढ़ाई लगातार प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही है।

शिक्षक संगठनों का विरोध तेज

राजकीय शिक्षक संघ के प्रांत महामंत्री रमेश पैन्यूली ने कहा कि पूर्व में जारी शासनादेश में स्पष्ट किया गया था कि शिक्षकों को केवल मतदान, मतगणना और जनगणना जैसे कार्यों में ही लगाया जाएगा, लेकिन अब उस आदेश की अवहेलना हो रही है।

इसी तरह जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संगठन के प्रदेश महामंत्री जगवीर सिंह खरोला और उत्तराखंड राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ के सदस्य मनोज तिवारी ने भी नाराजगी जताते हुए कहा कि निर्वाचन आयोग को इस संबंध में पत्र भेजा गया है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि यह निर्णय वापस नहीं लिया गया तो शिक्षक आंदोलन का रास्ता भी अपना सकते हैं।

सरकार ने दिया आश्वासन

इस पूरे मामले पर माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. मुकुल कुमार सती ने कहा कि निर्वाचन कार्य एक प्रशासनिक आवश्यकता है, लेकिन यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि इससे शिक्षा व्यवस्था प्रभावित न हो। शासन स्तर पर भी इस विषय पर मंथन चल रहा है।


निष्कर्ष

उत्तराखंड में शिक्षा व्यवस्था पहले से ही शिक्षक अभाव और एकल विद्यालयों की समस्या से जूझ रही है। ऐसे में यदि शिक्षकों को बार-बार प्रशासनिक कार्यों में लगाया जाता रहेगा तो इसका सीधा असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ेगा। अब यह देखना होगा कि राज्य सरकार और निर्वाचन आयोग इस विरोध को कितनी गंभीरता से लेते हैं और क्या कोई समाधान पेश करते हैं जिससे लोकतंत्र और शिक्षा दोनों का संतुलन बना रहे।


यह रिपोर्ट शिक्षा और लोकतंत्र के बीच संतुलन की आवश्यकता पर केंद्रित है, जिसे उत्तराखंड की वर्तमान स्थिति ने और अधिक जरूरी बना दिया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *