उत्तरकाशी आपदा | 6 अगस्त 2025
उत्तरकाशी के धराली क्षेत्र में 5 अगस्त को आई प्राकृतिक आपदा ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया। बादल फटने की घटना के बाद चारों ओर मलबा, चीखें, टूटी सड़कें और तबाही के मंजर थे। लेकिन ऐसे संकट की घड़ी में एक नाम सबसे पहले लोगों की उम्मीद बना — भारतीय सेना और आईटीबीपी के जवान।
जब सिविल प्रशासन की टीमें बाधित मार्गों के कारण मौके तक नहीं पहुंच पा रही थीं, तब सेना के जवानों ने मोर्चा संभाला। 25 फीट ऊंचे मलबे में फंसे ग्रामीणों तक पहुंचने के लिए जवानों ने अपने हाथों से रास्ता बनाना शुरू किया।
सेना की जान जोखिम में डालकर राहत मिशन
धराली गांव में करीब 200 लोग मलबे के बीच फंसे हुए हैं।
आईटीबीपी और सेना के जवान अस्थायी पुल बनाकर ग्रामीणों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं ताकि उन्हें खाद्य सामग्री, दवाइयां और पानी पहुंचाया जा सके।
हर्षिल में सेना ने अपने खोजी कुत्तों, ड्रोन और खुदाई मशीनों के साथ राहत कार्य तेज़ कर दिया है। एनडीआरएफ, सेना और आईटीबीपी की संयुक्त टीमें दिन-रात इस मुश्किल मोर्चे पर डटी हैं।
हर तरफ बर्बादी, लेकिन राहत की हर कोशिश
- धराली के बीच गांव में 25 फीट ऊंचा मलबा राहत कार्य में बड़ी चुनौती बना हुआ है।
- गंगोत्री हाईवे क्षतिग्रस्त होने के कारण रेस्क्यू टीमों को घटनास्थल तक पहुंचने में बाधा हो रही है।
- ऋषिकेश-उत्तरकाशी हाइवे भी प्रभावित है, जिससे आवाजाही बेहद धीमी हो गई है।
एनडीआरएफ के डीआईजी मोहसिन शाहेदी ने जानकारी दी कि:
- अब तक चार लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है।
- 50 से अधिक लोग अभी भी लापता बताए जा रहे हैं।
- हर्षिल और सुखी टॉप में दो जगहों पर अचानक बाढ़ आई, जिसमें हर्षिल में सेना के 11 जवान लापता हैं।
- सुखी टॉप में हालांकि कोई जनहानि नहीं हुई है।
एयरलिफ्ट की तैयारी पूरी
देहरादून में वायुसेना की टीमें एयरलिफ्ट ऑपरेशन के लिए तैयार खड़ी हैं।
जिन इलाकों में अब भी संपर्क नहीं हो पाया है, वहां से लोगों को निकालने के लिए हेलीकॉप्टर की मदद ली जाएगी।
एक और दुखद खबर: मलबे में युवक का शव बरामद
धराली में राहत कार्य के दौरान एक 32 वर्षीय युवक का शव मलबे से बरामद किया गया।
सेना और राहत टीमें लगातार लापता लोगों की तलाश कर रही हैं।
“जब मलबा चीख रहा था, तब सेना खड़ी थी”
इस आपदा ने एक बार फिर साबित किया कि आपात स्थिति में भारतीय सेना का कोई विकल्प नहीं।
मशीनों से आगे, हथियारों से हटकर, यह जंग थी ज़िंदगियां बचाने की — और इसमें सेना ने फिर एक बार अपना फर्ज निभाया।