देहरादून, 21 अगस्त 2025।
राजधानी देहरादून में एक अनोखा मामला सामने आया है, जहां माता-पिता ने अपने ही बेटे, बहू और चार वर्षीय पोती को घर से निकालने के लिए याचिका दायर की। लेकिन जिलाधिकारी सविन बंसल ने मामले की गहराई को समझते हुए न सिर्फ याचिका खारिज कर दी, बल्कि परिवार की असली परिभाषा भी समझाई।
माता-पिता ने की बेदखली की मांग
नकरौंदा सैनिक कॉलोनी (बालावाला) निवासी जुगल किशोर वर्मा और उनकी पत्नी संगीता वर्मा ने भरण-पोषण अधिनियम के तहत बेटे अमन, बहू मीनाक्षी और पोती को घर से निकालने की याचिका लगाई थी। यह मामला तब और गंभीर हो गया जब माता-पिता ने स्पष्ट किया कि उन्हें किसी भी तरह का भरण-पोषण नहीं चाहिए, बल्कि केवल बेटे और उसके परिवार को घर से बेदखल करना चाहते हैं।
डीएम ने आर्थिक स्थिति का किया विश्लेषण
जिलाधिकारी ने दोनों पक्षों की आर्थिक स्थिति की जांच की। पता चला कि जुगल किशोर राजपत्रित पद से रिटायर हैं और उनकी पत्नी वर्तमान में नौकरीपेशा हैं। दोनों की संयुक्त मासिक आय लगभग 55 हजार रुपये है।
वहीं, उनका बेटा अमन और बहू मीनाक्षी मात्र 25 हजार रुपये मासिक आय पर परिवार चला रहे हैं। उनके साथ चार साल की मासूम बेटी भी है, जिसका भविष्य इस बेदखली से सीधे प्रभावित हो सकता था।
परिवार की परिभाषा के विपरीत है बेदखली
डीएम सविन बंसल ने कहा कि परिवार का अर्थ केवल संपत्ति या अधिकार नहीं है, बल्कि उसमें परस्पर जिम्मेदारी और आने वाली पीढ़ी का भविष्य भी शामिल है। कम आय वाले बेटे-बहू और मासूम पोती को घर से निकालना परिवार की परिभाषा और सामाजिक मूल्यों के खिलाफ है।
पुलिस को दिए विशेष निर्देश
जिलाधिकारी ने याचिका खारिज करते हुए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को निर्देशित किया कि वे प्रत्येक माह दो बार संबंधित घर का निरीक्षण करें। ताकि दोनों पक्षों में शांति बनी रहे और किसी भी प्रकार का विवाद या हस्तक्षेप न हो।
सुनवाई के दौरान यह भी सामने आया कि माता-पिता ने बाहरी व्यक्तियों को बुलाकर बेटे और बहू के साथ मारपीट करवाई थी। ऐसे में पुलिस को विशेष तौर पर शांति व्यवस्था बनाए रखने का आदेश दिया गया है।
निष्कर्ष: रिश्तों में न्याय और संवेदनशीलता का संदेश
इस मामले में जिलाधिकारी का निर्णय न सिर्फ बेटे-बहू और पोती को राहत देने वाला साबित हुआ, बल्कि समाज को यह संदेश भी दिया कि परिवार की असली ताकत साथ रहना और एक-दूसरे का सहारा बनना है।