नई दिल्ली, 29 अगस्त 2025
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को संघ के शताब्दी समारोह के दौरान स्पष्ट किया कि उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि 75 वर्ष की उम्र में स्वयं या किसी और को राजनीति या संघ से रिटायर होना चाहिए। भागवत ने यह बयान उस समय दिया जब उनसे इस मुद्दे पर सवाल पूछा गया। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और स्वयं भागवत अगले महीने 75 वर्ष के होने जा रहे हैं।
पुराने बयान पर दिया स्पष्टीकरण
भागवत ने कहा कि उनके पुराने बयान को गलत तरीके से पेश किया गया। उन्होंने बताया कि उन्होंने दिवंगत वरिष्ठ प्रचारक मोरोपंत पिंगले के विचारों का हवाला दिया था, न कि अपनी व्यक्तिगत राय रखी थी।
“मैंने कभी नहीं कहा कि मैं या कोई और 75 साल की उम्र में सेवानिवृत्त हो जाएगा। संघ में हम तब तक काम करते हैं जब तक संघ चाहता है। संघ जब कहेगा, हम रुक जाएंगे,” भागवत ने कहा।
‘संघ जो कहता है, हमें करना पड़ता है’
आरएसएस प्रमुख ने संघ की कार्यप्रणाली पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि संघ में किसी को भी किसी भी उम्र में जिम्मेदारी दी जा सकती है।
“अगर मैं 80 साल का हूं और संघ कहे कि शाखा चलाओ, तो मुझे करना ही होगा। संघ जो भी कहता है, हम करते हैं। यह सेवानिवृत्ति का सवाल नहीं है। हम हमेशा तैयार रहते हैं,” उन्होंने कहा।
हिंदुत्व और धर्म पर विचार
धार्मिक मुद्दों पर बोलते हुए भागवत ने कहा कि हिंदू विचारधारा कभी यह नहीं कहती कि इस्लाम या किसी अन्य धर्म को खत्म होना चाहिए।
“धर्म व्यक्तिगत पसंद का मामला है। इसमें किसी तरह की जबरदस्ती या प्रलोभन नहीं होना चाहिए। हिंदू असुरक्षा की भावना के कारण चिंतित रहते हैं, लेकिन किसी भी हिंदू ने कभी नहीं कहा कि इस्लाम को खत्म होना चाहिए,” उन्होंने कहा।
जाति व्यवस्था समाप्त होनी चाहिए
जाति व्यवस्था पर भागवत ने स्पष्ट कहा कि इसका कोई स्थान आज के समाज में नहीं है।
“जो पुराना हो गया है, वह समाप्त होना ही चाहिए। जाति व्यवस्था कभी थी, लेकिन अब इसकी कोई प्रासंगिकता नहीं है। आरएसएस संविधान द्वारा तय आरक्षण नीतियों का समर्थन करता है और जब तक जरूरत होगी, उनका समर्थन करता रहेगा,” भागवत ने कहा।
काशी-मथुरा आंदोलन पर संघ का रुख
राम मंदिर आंदोलन पर बोलते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि यह एकमात्र ऐसा आंदोलन था जिसे संघ ने समर्थन दिया।
“राम मंदिर का आंदोलन हमने समर्थन किया था, लेकिन काशी और मथुरा के आंदोलनों का संघ समर्थन नहीं करेगा। हालांकि स्वयंसेवक अपनी व्यक्तिगत इच्छा से इनमें शामिल हो सकते हैं,” उन्होंने कहा।
अखंड भारत पर दृष्टिकोण
भागवत ने अखंड भारत को “एक सत्य” बताया। उन्होंने कहा कि भारत से अलग हुए देशों ने साझा संस्कृति और मातृभूमि से किनारा करने की कीमत चुकाई है।
“संघ ने हमेशा विभाजन का विरोध किया। उस समय ताकत की कमी के कारण संघ कुछ नहीं कर सका, लेकिन संस्थापक हेडगेवार और संघ के वरिष्ठ नेताओं ने स्पष्ट कहा था कि बंटवारा गलत था,” उन्होंने कहा।
यह बयान ऐसे समय आया है जब राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज है कि 75 वर्ष की आयु में नेताओं को सक्रिय राजनीति से संन्यास लेना चाहिए या नहीं। मोहन भागवत के इस स्पष्टीकरण के बाद यह बहस और भी रोचक हो गई है।