देहरादून, 4 सितंबर 2025
राजधानी दून और अन्य शहरों में रियल एस्टेट कारोबार पर रेरा (Real Estate Regulatory Authority) के नियमों की अनदेखी भारी पड़ रही है। प्रॉपर्टी डीलर पंजीकरण कराने से बच रहे हैं, जिससे धोखाधड़ी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।
जमीन धोखाधड़ी के मामले सबसे ज्यादा
देहरादून जिलाधिकारी की जनसुनवाई में सबसे अधिक मामले जमीन से जुड़ी धोखाधड़ी के सामने आ रहे हैं। अरबों रुपये का रजिस्ट्री फर्जीवाड़ा भी उजागर हो चुका है।
गली–मोहल्लों में प्रॉपर्टी डीलिंग के दफ्तर तो खुल गए हैं, लेकिन उत्तराखंड रेरा में पंजीकृत एजेंटों की संख्या अब तक 500 से भी कम है।
आम आदमी की जिंदगी पर चोट
मध्यम वर्गीय परिवार के लिए घर और जमीन खरीदना जीवनभर की मेहनत का नतीजा होता है। लेकिन जब वही सपना भूमाफिया और जालसाज डीलरों की वजह से टूट जाता है, तो पीड़ित को जीवनभर इसकी कीमत चुकानी पड़ती है।
ऐसे मामलों में रेरा भी ज्यादा मदद नहीं कर पाता क्योंकि खरीदार और विक्रेता के बीच लेनदेन कराने वाला एजेंट पंजीकृत नहीं होता। पुलिस भी अधिकतर मामलों को सिविल प्रकृति बताकर कार्रवाई से पीछे हट जाती है।
धोखाधड़ी के बड़े तरीके
भूमाफिया और फर्जी प्रॉपर्टी डीलरों के खेल इस प्रकार सामने आए हैं:
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कृषि भूमि को प्लॉटिंग कर आवासीय भूखंड के रूप में बेचना।
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सरकारी भूखंडों की बिक्री।
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एक ही प्लॉट को कई लोगों को बेचना।
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बैंकों में बंधक संपत्ति का अवैध सौदा।
इन सब वजहों से खरीदार अपनी पूरी जमा पूंजी गंवाकर न्याय के लिए भटकने को मजबूर हो रहे हैं।
रेरा का उद्देश्य और सख्ती का अभाव
रेरा के गठन का मुख्य उद्देश्य खरीदारों की सुरक्षा और रियल एस्टेट सेक्टर में पारदर्शिता लाना था। इस साल अप्रैल में आयोजित कार्यशाला में तय हुआ था कि:
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नियमों का पालन न करने पर रियल एस्टेट एजेंटों और बिल्डरों पर सख्त कार्रवाई होगी।
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पंजीकरण न कराने की दशा में एजेंटों पर प्रतिदिन 10 हजार रुपये जुर्माना (संपत्ति की कुल कीमत का 5% तक) लगाया जाएगा।
लेकिन धरातल पर अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
कब कसेगा रेरा का शिकंजा?
देहरादून समेत मैदानी जिलों में प्रॉपर्टी का कारोबार तेजी से फल-फूल रहा है, मगर पंजीकृत एजेंटों की कमी ने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जब तक सभी प्रॉपर्टी डीलर रेरा में पंजीकृत नहीं होते, तब तक भोले-भाले नागरिकों को धोखाधड़ी से बचाना मुश्किल है।