देहरादून, 5 सितंबर 2025
उत्तराखंड की राजनीति में इस समय कांग्रेस के भीतर ही दो अलग-अलग धाराएं दिखाई दे रही हैं। एक ओर जहां लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी देशभर में OBC और दलित समुदाय को साधने में जुटे हैं, वहीं प्रदेश के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (हरदा) ब्राह्मण समाज की ओर रुझान दिखा रहे हैं।
कांग्रेस में अलग-अलग राजनीतिक रणनीतियां
हरीश रावत ने हाल के दिनों में कई बार यह कहा कि कांग्रेस स्वभाव से ब्राह्मण रही है। उन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय, कमलापति त्रिपाठी और नारायण दत्त तिवारी जैसे नेताओं के उदाहरण देते हुए ब्राह्मण समाज से दूरी खत्म करने की अपील की।
रावत का यह प्रयास प्रदेश में भाजपा के पक्ष में हुए ब्राह्मण मतदाताओं के ध्रुवीकरण को तोड़ने की कोशिश माना जा रहा है।
2017 और 2022 की हार से सबक
कांग्रेस को वर्ष 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में करारी हार का सामना करना पड़ा।
- 2017 में भाजपा को 46.51% और कांग्रेस को 33.49% वोट मिले, जिससे भाजपा को रिकॉर्ड 57 सीटें हासिल हुईं।
- 2022 में भाजपा का वोट शेयर 44.3% और कांग्रेस का 37.9% रहा, भाजपा 47 सीटों के साथ सत्ता में लौटी जबकि कांग्रेस को 20 सीटें मिलीं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि इस हार के पीछे सबसे बड़ा कारण ब्राह्मण वोटों का भाजपा की ओर झुकाव था।
उत्तराखंड के सामाजिक समीकरण
जनगणना 2011 और चुनावी आंकड़ों पर नजर डालें तो प्रदेश की राजनीति पूरी तरह जातीय समीकरणों पर टिकी है।
- राजपूत मतदाता – 35%
- ब्राह्मण मतदाता – 25%
- अनुसूचित जाति – 19%
- ओबीसी व अन्य – 19%
- मुस्लिम – 14%
- अन्य अल्पसंख्यक – 2%
राजपूतों पर भाजपा की पकड़ मजबूत मानी जाती है, जबकि ब्राह्मणों का अपेक्षाकृत ज्यादा ध्रुवीकरण भाजपा की तरफ हुआ है। यही वजह है कि कांग्रेस सत्ता से लगातार दूर रही।
पहाड़ी जिलों में समीकरण ज्यादा अहम
उत्तराखंड की 70 विधानसभा सीटों में से 50 सीटें नौ पर्वतीय जिलों में आती हैं। यहां ठाकुर और ब्राह्मण मतदाता सीधे तौर पर चुनावी नतीजों को प्रभावित करते हैं। इन जिलों में दोनों समुदायों की औसत भागीदारी 65-70% तक पहुंच जाती है।
दूसरी ओर, हरिद्वार (11 सीट) और ऊधम सिंह नगर (9 सीट) – इन 20 सीटों पर मुस्लिम और OBC वोटरों की भूमिका ज्यादा अहम रहती है। फिलहाल कांग्रेस इन 20 में से 11 सीटें अपने पास रखे हुए है।
हरदा का बड़ा दांव
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राहुल गांधी की OBC राजनीति और हरीश रावत की ब्राह्मण राजनीति, कांग्रेस की रणनीति को दो ध्रुवों में बांटती है। हालांकि हरदा का तर्क है कि ब्राह्मण समाज को बिना जोड़े कांग्रेस सत्ता में वापसी की कल्पना नहीं कर सकती।
अब देखने वाली बात यह होगी कि ब्राह्मण कार्ड खेलने की रावत की रणनीति कांग्रेस को फायदा दिला पाती है या नहीं, क्योंकि राज्य में कुल वोटरों का करीब 25% हिस्सा ब्राह्मण समुदाय से जुड़ा है।
उत्तराखंड की राजनीति फिलहाल नई करवट ले रही है। आने वाले विधानसभा चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि राहुल गांधी और हरीश रावत की यह अलग-अलग लाइन कांग्रेस को सत्ता की ओर ले जाती है या पार्टी के भीतर ही नए तनाव को जन्म देती है।