तारीख: 13 सितंबर 2025 | स्थान: देहरादून
निचले क्षेत्रों में बढ़ा बाढ़ का जोखिम
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में तेजी से टूटते और पिघलते ग्लेशियर निचले इलाकों के लिए बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यह स्थिति यूं ही बनी रही तो बाढ़ और गाद (सिल्ट) जमाव की घटनाएं और बढ़ेंगी, जिससे हजारों लोगों का जीवन प्रभावित हो सकता है।
हर साल 5 से 20 मीटर पीछे खिसक रहे ग्लेशियर
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भू-विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एचसी नैनवाल के अनुसार, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के ग्लेशियर हर साल 5 से 20 मीटर तक पीछे खिसक रहे हैं। केवल लंबाई ही नहीं, बल्कि उनकी मोटाई भी लगातार घट रही है।
उन्होंने बताया कि हैंगिंग ग्लेशियर (लटकते हुए ग्लेशियर) अधिक टूटते हैं, जिससे हिमस्खलन और अचानक बाढ़ की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है।
ग्लोबल वार्मिंग और गैस उत्सर्जन जिम्मेदार
विशेषज्ञों का मानना है कि पृथ्वी के तापमान में लगातार हो रही वृद्धि और वायुमंडल में गैसों का बढ़ता उत्सर्जन इस संकट का मुख्य कारण है।
प्रोफेसर नैनवाल ने यह भी कहा कि जंगलों में लगने वाली आग से निकलने वाली गैसें भी ग्लेशियरों के टूटने और पिघलने की रफ्तार बढ़ा रही हैं।
जल विद्युत परियोजनाओं पर गंभीर असर
ग्लेशियरों के टूटने से नदियों में पानी के साथ-साथ सिल्ट की मात्रा भी तेजी से बढ़ रही है। इससे:
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निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है।
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जल विद्युत परियोजनाओं की झीलों और बांधों में गाद जमने से भंडारण क्षमता कम हो रही है।
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बिजली उत्पादन में कमी आ रही है।
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साथ ही समुद्र का जलस्तर भी बढ़ने की आशंका जताई जा रही है।
प्रोफेसर नैनवाल ने सुझाव दिया कि गैस उत्सर्जन पर नियंत्रण और इसके लिए राष्ट्रव्यापी नीति बनाना समय की मांग है।
अलकनंदा नदी और श्रीनगर शहर पर सीधा खतरा
भूगोलवेत्ता प्रोफेसर मोहन पंवार ने चेतावनी दी है कि श्रीनगर शहर अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण पहले से ही जोखिम भरे क्षेत्र में है।
उन्होंने बताया कि:
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अलकनंदा नदी के ऊपरी प्रवाह क्षेत्र में कई बड़े ग्लेशियर मौजूद हैं।
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रास्ते में 30 से ज्यादा छोटी-बड़ी नदियां इसमें मिल जाती हैं।
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इस वजह से अलकनंदा का जलस्तर बहुत तेजी से बढ़ता है।
प्रो. पंवार ने कहा कि श्रीनगर जल विद्युत परियोजना की झील में अत्यधिक गाद जमा हो रही है, जिससे जल स्तर लगातार ऊपर उठ रहा है। इसका प्रमाण धारी देवी मंदिर के पिलरों पर जमा गाद से साफ देखा जा सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में उत्तराखंड और हिमालयी क्षेत्रों में बाढ़ और आपदाओं का खतरा कई गुना बढ़ सकता है।