देहरादून, 15 सितंबर 2025
राजधानी दून में बच्चों का घूमने का शौक और पारिवारिक नाराजगी चिंता का विषय बन गई है। पिछले दो महीनों में 97 नाबालिग बच्चों की गुमशुदगी के मामले सामने आए। पुलिस की सक्रियता से इनमें से 87 बच्चे सकुशल बरामद कर लिए गए, जबकि 10 की तलाश अब भी जारी है।
नाराजगी और घूमने की चाह बनी बड़ी वजह
जांच में सामने आया कि 62 बच्चे परिवार से नाराज होकर, जबकि 24 बच्चे घूमने-फिरने के शौक में घर छोड़कर चले गए।
पुलिस के अनुसार, कई मामलों में बच्चों का गुस्सा मामूली वजहों से था—जैसे फोन रिचार्ज न होना या परिजनों की डांट।
इंटरनेट के जाल में फंसी 11 बालिकाएं
सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह है कि 11 लड़कियाँ इंटरनेट मीडिया के माध्यम से अपराधियों के चंगुल में फँस गई थीं। पुलिस ने उन्हें बरामद किया और आरोपितों को जेल भेजा।
यह घटना दर्शाती है कि सोशल मीडिया बच्चों के लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता है, खासकर जब अभिभावक उनकी ऑनलाइन गतिविधियों से अनजान रहते हैं।
पुलिस की तेज कार्रवाई और काउंसलिंग
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अजय सिंह ने बताया कि बच्चों की गुमशुदगी के हर मामले को पुलिस गंभीरता से ले रही है। किसी भी गुमशुदगी की रिपोर्ट पर तत्काल अपहरण की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई शुरू की जाती है।
बरामद होने के बाद न केवल बच्चों, बल्कि अभिभावकों की भी काउंसलिंग की जा रही है ताकि परिवारों में आपसी संवाद बेहतर हो सके और बच्चे ऐसी गलतियों को दोहराएं नहीं।
राज्यों से बरामद हुए बच्चे
दून पुलिस ने लापता बच्चों को दिल्ली, मुंबई, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान से सकुशल बरामद किया।
एक मामले में पटेलनगर से लापता किशोरी को लुधियाना में काम करते पाया गया। पुलिस ने उससे वीडियो कॉल के जरिए संपर्क किया, और उसने जल्द ही घर लौटने का आश्वासन दिया।
इसी तरह प्रेमनगर की एक नाबालिग लड़की परिजनों द्वारा फोन रिचार्ज न कराने से नाराज होकर दोस्तों के साथ काम की तलाश में बाहर चली गई थी।
अभी 10 मामलों में तलाश जारी
पुलिस के अनुसार, अभी भी 10 बच्चे लापता हैं जिनकी तलाश लगातार जारी है। कई मामलों में पुलिस इंटरनेट मीडिया की मदद से बच्चों तक पहुँचने का प्रयास कर रही है।
निष्कर्ष
देहरादून में गुमशुदा बच्चों की बढ़ती संख्या इस बात का संकेत है कि अभिभावकों को बच्चों की भावनाओं और जरूरतों पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है।
पुलिस की सक्रियता से ज्यादातर बच्चे बरामद हो गए हैं, लेकिन यह घटनाएं चेतावनी देती हैं कि पारिवारिक संवाद की कमी और इंटरनेट का गलत इस्तेमाल बच्चों को खतरनाक रास्तों की ओर ले जा सकता है।