चमोली (उत्तराखंड), 20 सितम्बर 2025
उत्तराखंड का चमोली जिला इन दिनों आपदा की दर्दनाक कहानियों से भरा हुआ है। नंदानगर ब्लॉक के कुंतरी लगा फाली गांव में बादल फटने से ऐसा कहर बरपा कि कई परिवार उजड़ गए। इस आपदा में एक मां और उसके दो जुड़वा बेटों की मौत हो गई, जबकि पिता 16 घंटे तक मलबे में दबे रहने के बाद जिंदा बाहर निकाले गए।
मलबे से मिला दिल दहला देने वाला मंजर
गांव में राहत और बचाव कार्य जारी था कि अचानक मलबे से तीन शव निकाले गए। सभी की आंखें नम हो गईं जब उन्होंने देखा कि दोनों जुड़वा बेटे अपनी मां की छाती से चिपके हुए थे। यह दृश्य इतना मार्मिक था कि पूरे गांव में मातम पसर गया और हर किसी की आंखें आंसुओं से भर आईं।
कुंवर सिंह की जिंदगी बर्बाद, 16 घंटे बाद बची जान
मृतकों में कांती देवी और उनके दोनों बेटे विकास और विशाल (10 वर्ष) शामिल हैं। परिवार का मुखिया कुंवर सिंह हादसे के समय घर में ही मौजूद थे और मलबे में दब गए। राहतकर्मियों को सुबह रेस्क्यू के दौरान उनके जिंदा होने का संकेत मिला।
शाम करीब छह बजे रेस्क्यू टीम ने उन्हें मलबे से बाहर निकाला। उस दौरान उनका आधा शरीर मलबे में दबा था और चेहरे पर मिट्टी जमी थी। रोशनदान से आती हवा ने उनकी सांसों को 16 घंटे तक जिंदा रखा। हालांकि परिवार को खो देने के बाद अब वह पूरी तरह टूट चुके हैं।
गांव का संघर्ष और उजड़ा परिवार
कुंवर सिंह मेहनत-मजदूरी कर अपने छोटे से घर का खर्च चलाते थे। उन्होंने ही गांव में घर बनाया था। उनके पिता बलवंत सिंह का एक बेटा शहर में बस गया था, जबकि कुंवर सिंह पत्नी और बच्चों के साथ गांव में रहते थे। विकास और विशाल सरस्वती शिशु मंदिर के छात्र थे। आपदा की रात पूरा परिवार गहरी नींद में था और अचानक आए मलबे ने सब कुछ निगल लिया।
गांव में मातम, रेस्क्यू अभियान जारी
कुंतरी लगा फाली गांव में इस त्रासदी के बाद हर घर सहमा हुआ है। ग्रामीण लगातार मलबे में लापता लोगों की तलाश कर रहे हैं। राहत और बचाव दल दिन-रात काम कर रहे हैं। लेकिन मां और दो बच्चों की मौत ने पूरे इलाके को झकझोर दिया है।
निष्कर्ष
चमोली की यह घटना सिर्फ एक परिवार का दर्द नहीं, बल्कि उस पीड़ा का प्रतीक है जो प्राकृतिक आपदाएं पहाड़ी इलाकों में बार-बार छोड़ जाती हैं। कुंवर सिंह भले ही मलबे से जिंदा निकल आए हों, लेकिन उनकी जिंदगी अब हमेशा इस खोने के दर्द से भरी रहेगी। गांववाले भी इस त्रासदी को भूल नहीं पा रहे हैं और यही सवाल हर किसी के मन में है कि आखिर कब तक पहाड़ आपदाओं के बोझ तले यूं ही कराहते रहेंगे।