देहरादून, 24 सितंबर 2025
राजधानी देहरादून के जाखन क्षेत्र में हुई एक घटना ने पूरे शहर को दहला दिया है। दो रॉटवीलर नस्ल के कुत्तों के हमले में 75 वर्षीय कौशल्या देवी गंभीर रूप से घायल हो गईं। उनके इलाज पर अब तक 8 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन हालत में खास सुधार नहीं है।
दूसरी ओर, कुत्तों के मालिक पर केवल ₹1000 का जुर्माना लगाकर मामला समाप्त कर दिया गया। कमजोर कानून और लचर कार्रवाई से नागरिकों में गहरा आक्रोश और डर व्याप्त है।
मंदिर जाते समय हुआ जानलेवा हमला
यह हादसा 5 जुलाई की सुबह हुआ, जब कौशल्या देवी मंदिर जा रही थीं। अचानक दो रॉटवीलर ने उन पर हमला कर दिया।
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उनके शरीर पर 200 से अधिक टांके लगे।
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कुत्तों ने उनका एक कान लगभग नोच डाला।
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हाथ की हड्डी टूट गई।
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शरीर गहरे जख्मों से भर गया।
अब तक उनकी चार सर्जरी हो चुकी हैं। परिवार के मुताबिक, वह नींद नहीं ले पातीं, करवट तक बदलना मुश्किल है और घर से बाहर निकलने का साहस नहीं जुटा पा रही हैं।
मालिक पर केवल जुर्माना, कानून बेअसर
इतने गंभीर हमले के बाद भी कुत्तों के मालिक पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई।
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नगर निगम ने केवल पंजीकरण और नसबंदी न कराने के आधार पर ₹1000 का जुर्माना लगाया।
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पुलिस ने पालतू जानवर की लापरवाही की धारा में केस दर्ज किया, जो जमानती अपराध है।
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मालिक ने चालान भरकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया और कुत्तों को सहारनपुर भिजवा दिया।
वह अब सामान्य जीवन जी रहा है, जबकि पीड़ित परिवार आज भी दर्द और आर्थिक बोझ झेल रहा है।
डर में जी रहे हैं नागरिक
यह अकेली घटना नहीं है। पिछले एक साल में देहरादून के अस्पतालों में 2400 से अधिक कुत्तों के काटने के मामले दर्ज हुए। लेकिन, आधिकारिक शिकायतें 50 से भी कम रही हैं।
कारण स्पष्ट है—लंबी कानूनी प्रक्रिया, समय और पैसे की बर्बादी का डर।
नगर निगम के नियमों के अनुसार, पालतू कुत्तों को सार्वजनिक स्थानों पर पट्टा और मुंह पट्टी के साथ घुमाना जरूरी है, लेकिन इसका पालन शायद ही कहीं होता है।
पीड़ित परिवार की गुहार
कौशल्या देवी के बेटे उमंग निर्वाल का कहना है कि उनकी मां अब भी दर्द और डर में जी रही हैं। वह चाहते हैं कि इस तरह के मामलों में कुत्तों के मालिक पर सख्त कार्रवाई हो।
निष्कर्ष
देहरादून की यह घटना स्पष्ट करती है कि खतरनाक नस्ल के पालतू कुत्तों के लिए मौजूदा कानून और जुर्माने पर्याप्त नहीं हैं। एक ओर पीड़ित परिवार लाखों रुपये खर्च कर जीवन और मौत के बीच संघर्ष कर रहा है, दूसरी ओर आरोपी मामूली जुर्माना भरकर आसानी से छूट जाता है।
नागरिकों का मानना है कि जब तक कानून में कड़ी सजा और जिम्मेदारी तय करने वाले प्रावधान नहीं होंगे, तब तक इस तरह की घटनाएं थमने वाली नहीं हैं।