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Mussoorie Land Scam: साढ़े 11 हजार एकड़ वन भूमि पर अतिक्रमण का खतरा, 7375 सीमा स्तंभ गायब

स्थान – देहरादून/मसूरी | तिथि – 01 अक्टूबर 2025


वन भूमि पर बड़ा घोटाला उजागर

मसूरी नगर पालिका और मसूरी वन प्रभाग की सीमा से लगे क्षेत्रों में अतिक्रमण का बड़ा मामला सामने आया है। जांच में पाया गया कि यहां वन भूमि के करीब 7375 सीमा स्तंभ (बाउंड्री पिलर) गायब हो चुके हैं। सबसे अधिक गड़बड़ी मसूरी पालिका से लगे क्षेत्रों में हुई है, जिससे साढ़े 11 हजार एकड़ वन भूमि पर अतिक्रमण का खतरा गहरा गया है।


इतिहास से जुड़ा विवाद

जमींदारी खात्मे के बाद नियमों के तहत किसी भी परिवार को सिर्फ 12.5 एकड़ भूमि रखने की अनुमति थी, जबकि अतिरिक्त भूमि को सरकार ने अपने कब्जे में लिया था। इसके बाद मसूरी पालिका से लगे सात गांवों में लगभग 11,500 एकड़ भूमि सरकार को सौंपी गई। अधिकतर जमीन का स्वरूप जंगल जैसा था, इसलिए इन्हें भारतीय वन अधिनियम के तहत अधिसूचित कर दिया गया।


ग्रामीणों को सीमित अधिकार, लेकिन…

ग्रामीणों को इस वन भूमि में सिर्फ सीमित प्रयोग की अनुमति दी गई थी –

  • पशुओं की चराई

  • जलाने के लिए लकड़ी

  • पशुओं के चारे-पत्ती का उपयोग

  • खाद बनाने के लिए सूखी पत्तियां

  • शव जलाने के लिए लकड़ी

लेकिन समय बीतने के साथ भूमि पर अतिक्रमण शुरू हो गया। सीमा पिलर धीरे-धीरे गायब किए गए और मूल मालिकों के वंशजों ने जमीनों की बिक्री तक शुरू कर दी।


1990 में हुई बड़ी चूक

भूमि घोटाले की सबसे बड़ी वजह 1990 के आसपास हुए जमीनों के बंदोबस्त (सेटलमेंट) के दौरान हुई चूक मानी जा रही है। उस समय बनाए गए नक्शे का मिलान वन विभाग की अधिसूचित भूमि के नक्शे से नहीं किया गया। नतीजतन, जमीनों की वास्तविक सीमा का रिकॉर्ड बिगड़ गया और राजस्व विभाग व वन विभाग दोनों ने अपने-अपने हिसाब से अलग-अलग काम करना शुरू कर दिया।


राजस्व और नगर पालिका की भूमिका पर सवाल

राजस्व विभाग ने इस मामले में उचित निगरानी नहीं की, वहीं वन विभाग भी चुप्पी साधे रहा। इस दौरान नगर पालिका प्रशासन ने भी सिर्फ असेसमेंट (कर निर्धारण) तक खुद को सीमित रखा। यही असेसमेंट बाद में अतिक्रमण और अवैध विक्रय के लिए वैधता का बहाना बन गया। जबकि असेसमेंट का स्वामित्व से कोई संबंध नहीं होता।


किन क्षेत्रों में कितना अतिक्रमण?

मसूरी के आसपास की जमीनों में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हुई है। प्रारंभिक रिपोर्ट में जिन क्षेत्रों का जिक्र आया है, उनमें –

  • चामासारी – 4960 एकड़

  • भीतरली – 1845 एकड़

  • रिखोली – 2473 एकड़

  • मकड़ैती – 97 एकड़

  • क्यारा – 1187 एकड़

  • कैरवान करणपुर – 341 एकड़

  • क्यारकुली भट्टा – 500 एकड़

इन जमीनों में से कई हिस्सों पर पहले से निर्माण भी हो चुका है।


जांच और आगे की कार्रवाई

मसूरी वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी अमित कंवर ने कहा कि –
“पिलर गायब होने और अतिक्रमण की स्थिति स्पष्ट करने के लिए संयुक्त सर्वे आवश्यक है। इस दिशा में जल्द निर्णय लिया जाएगा और दोषियों पर कार्रवाई होगी।”


निष्कर्ष

मसूरी में जमीनों का यह विवाद सिर्फ अतिक्रमण का नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही और कानूनी चूक का बड़ा उदाहरण बनकर सामने आया है। 11,500 एकड़ से अधिक वन भूमि पर संकट गहराया हुआ है। अब देखने वाली बात होगी कि संयुक्त सर्वे के बाद हकीकत क्या निकलती है और कितनी जमीन वास्तव में बचाई जा सकती है।

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