BREAKING

Dussehra 2025: उत्तराखंड के उदपाल्टा और किरौली गांवों में नहीं जला रावण, ग्रामीणों ने किया ‘गागली युद्ध’, तस्वीरें आईं सामने

देहरादून/जौनसार बावर, 2 अक्टूबर 2025। विजयदशमी पर जहां देशभर में रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव मनाया गया, वहीं उत्तराखंड के जौनसार बावर क्षेत्र के दो गांवों – उदपाल्टा और किरौली – में दशहरा एक अलग ही अंदाज़ में मनाया गया। यहाँ रावण दहन नहीं हुआ, बल्कि ग्रामीणों ने परंपरा के अनुसार ‘गागली युद्ध’ लड़ा।


गागली युद्ध की अनूठी परंपरा

गुरुवार को दशहरे के मौके पर दोनों गांवों के ग्रामीण जंगल में स्थित क्याणी डांडा पहुंचे। यहाँ पहले ग्रामीणों ने घास-फूस से बनी रानी और मुन्नी की प्रतिमाओं का कुएं में विसर्जन किया। इसके बाद परंपरा के मुताबिक ग्रामीण अरबी के पौधों के डंठल और पत्ते लेकर आपस में टूट पड़े।

करीब एक घंटे तक चले इस युद्ध में दोनों गांवों के लोग एक-दूसरे पर वार करते रहे। हालांकि इस प्रतीकात्मक युद्ध में किसी की जीत या हार नहीं होती। इसे बुराइयों के त्याग और पश्चाताप स्वरूप निभाई जाने वाली परंपरा माना जाता है।


श्राप से जुड़ी है परंपरा की कहानी

कहा जाता है कि कई वर्ष पहले उदपाल्टा गांव की रानी और मुन्नी नामक दो बालिकाएँ कुएं पर पानी भरने जाती थीं। एक दिन रानी की कुएं में गिरने से मृत्यु हो गई। ग्रामीणों ने इसके लिए मुन्नी को दोषी ठहराया। अपराधबोध में डूबी मुन्नी ने भी कुएं में छलांग लगाकर अपनी जान दे दी।

इसके बाद गांव में लगातार अप्रिय घटनाएँ होने लगीं। जब लोग महासू देवता के पुजारी के पास पहुंचे तो बताया गया कि गांव पर रानी-मुन्नी का श्राप लगा हुआ है। इससे मुक्ति पाने के लिए दशहरे के दिन दोनों बहनों की घास-फूस की प्रतिमाओं को कुएं में विसर्जित करने और गागली युद्ध करने की परंपरा शुरू हुई।


युद्ध के बाद बधाई और लोकनृत्य

युद्ध संपन्न होने के बाद दोनों गांवों के लोग एक-दूसरे को बधाई देते हैं। इसके बाद महिलाओं और पुरुषों ने हारूल, तांदी, रासो और झेंता जैसे पारंपरिक लोकनृत्यों की प्रस्तुति दी। संगीत और नृत्य के बीच दशहरे का यह अनूठा आयोजन उत्सव में बदल गया।


रावण दहन की बजाय अनूठी सांस्कृतिक धरोहर

जहाँ पूरे देश में दशहरा रावण दहन के साथ मनाया जाता है, वहीं जौनसार बावर का यह आयोजन इस क्षेत्र की विशिष्ट सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखे हुए है। यहाँ दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देने के साथ-साथ रानी-मुन्नी की स्मृति और उनके श्राप से जुड़ी लोककथा को भी पीढ़ी दर पीढ़ी संजोए हुए है।


निष्कर्ष

जौनसार बावर के उदपाल्टा और किरौली गांवों में दशहरे का यह आयोजन परंपरा और आस्था का अद्भुत संगम है। रावण दहन की जगह ‘गागली युद्ध’ न केवल ग्रामीणों को उनकी संस्कृति से जोड़ता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि हर क्षेत्र अपनी अलग पहचान और लोककथाओं के साथ भारतीय संस्कृति की विविधता को समृद्ध करता है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *