स्थान: देहरादून, उत्तराखंड | दिनांक: रविवार, 5 अक्टूबर 2025
परिवारिक विवाद से शुरू हुआ मामला, DM की सूझबूझ से खत्म हुआ मनमुटाव
देहरादून में एक बुजुर्ग दंपती ने अपने ही बेटे-बहू और पोते-पोतियों को घर से निकालने की अपील जिला मजिस्ट्रेट न्यायालय में की थी। मामला भरण-पोषण अधिनियम के तहत दायर हुआ था। लेकिन जिलाधिकारी सविन बंसल ने अपनी संवेदनशीलता और संतुलित निर्णय से न केवल इस परिवार को टूटने से बचाया, बल्कि एक मिसाल पेश की कि प्रशासनिक पद पर रहकर भी मानवता और पारिवारिक मूल्यों की रक्षा की जा सकती है।
भरण-पोषण अधिनियम के तहत दायर था मामला
करीब 70 वर्षीय जसवंत सिंह और उनकी पत्नी, निवासी खुड़बुड़ा, देहरादून, 22 अगस्त को डीएम कार्यालय पहुंचे थे। उन्होंने अपने बेटे बंसी, उसकी पत्नी और तीन छोटे बच्चों को घर से बेदखल करने की गुहार लगाई। दंपती का आरोप था कि बेटा-बहू उन्हें प्रताड़ित करते हैं और संपत्ति में उनका हिस्सा चाहते हैं।
डीएम सविन बंसल ने मामले को गंभीरता से लेते हुए इसे भरण-पोषण अधिनियम, 2007 के अंतर्गत दर्ज करवाया और सुनवाई शुरू की।
दो सुनवाई में ही DM ने समझाया परिवार को अपनापन
सुनवाई के दौरान जिलाधिकारी ने दोनों पक्षों को अलग-अलग बुलाकर उनकी बातें सुनीं। फिर एक साथ बैठाकर परिवार को समझाया कि “बुजुर्ग माता-पिता का आशीर्वाद ही संतान की सबसे बड़ी पूंजी है, और माता-पिता को भी अपने बच्चों के संघर्ष को समझना चाहिए।”
उन्होंने बेटे-बहू को माता-पिता के प्रति अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का एहसास कराया, वहीं बुजुर्ग दंपती को भी समझाया कि बेटा-बहू और पोते-पोतियां ही उनके बुढ़ापे की सबसे बड़ी ताकत हैं।
DM ने कराई सुलह, परिवार फिर से एकजुट हुआ
परिवार के भीतर वर्षों से चल रहे विवाद को समाप्त करने के लिए जिलाधिकारी ने दोनों पक्षों को एक साथ बैठाकर आपसी सहमति से समाधान कराया।
उन्होंने कहा कि “परिवारिक मतभेद बातचीत से सुलझाए जा सकते हैं, न्यायालय में नहीं।”
इस बातचीत के बाद दोनों पक्षों ने आपसी रंजिश भुलाकर साथ रहने पर सहमति जताई। बुजुर्ग दंपती ने अपने बेटे, बहू और पोते-पोतियों को घर में रखने का निर्णय लिया, जबकि बेटे ने भी अपने माता-पिता की सेवा करने का वचन दिया।
DM बंसल ने दी मानिटरिंग की जिम्मेदारी, बोले—“अब हर सप्ताह संवाद होगा”
सुलह के बाद जिलाधिकारी ने कहा कि जिला प्रशासन इस परिवार के संबंधों की निरंतर मॉनिटरिंग करेगा, ताकि भविष्य में कोई नया विवाद उत्पन्न न हो।
उन्होंने दोनों पक्षों से एक-दूसरे के अधिकारों और सीमाओं का सम्मान करने की अपील भी की।
परिवार की पृष्ठभूमि: चार बेटों में से दो रहते हैं अलग
जसवंत सिंह दंपती के चार बेटे हैं, जिनमें दो अपने परिवार के साथ अलग रहते हैं। तीसरा बेटा दिव्यांग है, जबकि चौथा बेटा बंसी अपने परिवार के साथ माता-पिता के साथ ही रहता था।
बंसी का कपड़ों का छोटा व्यवसाय है और आर्थिक स्थिति कमजोर है। इन्हीं आर्थिक तनावों और पारिवारिक गलतफहमियों के कारण विवाद गहराता चला गया था।
निष्कर्ष: DM सविन बंसल बने समाज के लिए उदाहरण
देहरादून के जिलाधिकारी सविन बंसल ने इस संवेदनशील मामले में प्रशासनिक नहीं, बल्कि मानवीय दृष्टिकोण अपनाकर एक बिखरते परिवार को जोड़ दिया।
उनकी पहल से अब बुजुर्ग दंपती, बेटा-बहू और पोते-पोतियां एक ही छत के नीचे प्रेमपूर्वक रह रहे हैं।
इस घटना के बाद न केवल देहरादून प्रशासन में बल्कि पूरे उत्तराखंड में DM सविन बंसल की संवेदनशीलता और मानवीय पहल की चर्चा हो रही है।