देहरादून, 8 अक्टूबर 2025 (बुधवार)
राजस्थान-मध्य प्रदेश हादसों के बाद भी नहीं जागा उत्तराखंड प्रशासन
राजस्थान और मध्य प्रदेश में कफ सीरप के सेवन से बच्चों की मौत और गंभीर बीमारियों की घटनाओं के बाद उत्तराखंड के खाद्य संरक्षा एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने सख्त निर्देश जारी किए थे कि बच्चों के लिए खांसी की दवा केवल पंजीकृत चिकित्सक के पर्चे पर ही दी जाए।
लेकिन देहरादून में वास्तविक स्थिति कुछ और ही है—यह आदेश अब सिर्फ कागज़ों में सिमटकर रह गया है।
जागरण की पड़ताल में खुला राज: बिना पर्चे के बिक रही बच्चों की कफ सिरप
दैनिक जागरण की टीम ने शहर के कई इलाकों—कांवली रोड, बल्लीवाला चौक, चकराता रोड और देहराखास—में पड़ताल की, जिसमें चौंकाने वाली तस्वीर सामने आई।
अधिकांश मेडिकल स्टोरों पर बिना किसी चिकित्सक के पर्चे के बच्चों के लिए खांसी का सिरप आसानी से मिल रहा था। यहां तक कि कुछ दुकानदारों ने डॉक्टर द्वारा सुझाई गई कंपनी की जगह अपनी पसंद की कंपनी की दवा थमा दी।
कांवली रोड से चकराता रोड तक ‘सिरप’ की आसान बिक्री
सुबह करीब साढ़े 11 बजे कांवली रोड स्थित एक मेडिकल स्टोर पर जब रिपोर्टर ने पांच साल के बच्चे के लिए कफ सिरप मांगा, तो दुकानदार ने बिना किसी सवाल-जवाब के बोतल थमा दी।
बल्लीवाला चौक के पास एक अन्य दुकान पर भी यही हाल मिला—सीरप मांगते ही दुकानदार बोला, “70 रुपये की है, बच्चों के लिए बेस्ट है।”
चकराता रोड और तिलक रोड स्थित दुकानों पर भी बिना पर्ची के बच्चों की खांसी की दवाएं खुलेआम बिकती मिलीं।
ड्रग विभाग के आदेश पर उठ रहे सवाल
एफडीए ने हाल ही में सभी दवा विक्रेताओं को निर्देश दिया था कि बच्चों की खांसी और जुकाम की दवा केवल चिकित्सक की सलाह पर दी जाए।
डेक्सट्रोमेथारफन युक्त खांसी का सिरप और क्लोर्फेनिरामाइन मेलीएट-फेनाइलएफ्रिन संयोजन वाली दवाएं चार वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए प्रतिबंधित हैं।
लेकिन हकीकत में इन नियमों का कोई पालन नहीं हो रहा। दुकानदारों ने न केवल आदेशों की अनदेखी की है, बल्कि बिना जांच-पड़ताल के इन खतरनाक दवाओं की बिक्री जारी रखी है।
ड्रग विभाग की सफाई—“पालन हो रहा है”
देहरादून, ऋषिकेश और विकासनगर क्षेत्र में करीब 6500 दवा दुकानें लाइसेंस प्राप्त हैं।
होलसेल कैमिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष संजीव तनेजा ने दावा किया कि “एफडीए के आदेश का पूरा पालन किया जा रहा है। डेक्सट्रोमेथारफन वाली सभी दवाओं की बिक्री रोक दी गई है।”
वहीं एफडीए के अपर आयुक्त ताजबर सिंह जग्गी ने कहा कि “बिना चिकित्सक के पर्चे पर बच्चों की दवा बेचने वालों के खिलाफ ड्रग्स अधिनियम के तहत कड़ी कार्रवाई की जाएगी। निरीक्षण टीमों को सक्रिय रहने के निर्देश दिए गए हैं।”
विशेषज्ञों की चेतावनी: बच्चों को बिना सलाह दवा देना खतरनाक
राजकीय दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल के बाल रोग विभाग के एचओडी प्रो. डॉ. अशोक कुमार ने कहा कि मौसम परिवर्तन के दौरान वायरल संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ते हैं, और इस दौरान बच्चों के लिए बिना डॉक्टर की सलाह दवा लेना अत्यंत जोखिम भरा है।
उन्होंने कहा,
“बच्चों में वायरल संक्रमण अब 10-12 दिन तक रहता है। ऐसे में पैरेंट्स को चाहिए कि वे स्वयं दवा न लें, बल्कि चिकित्सक की सलाह पर ही उपचार करें।”
डॉ. कुमार ने अभिभावकों से अपील की कि बच्चों को पर्याप्त पानी दें, उन्हें मौसम के अनुसार कपड़े पहनाएं और यदि वायरल संक्रमण है, तो कुछ दिन स्कूल न भेजें ताकि संक्रमण फैलने से रोका जा सके।
निष्कर्ष: प्रशासन की लापरवाही बनी बच्चों की जान पर खतरा
देहरादून में एफडीए के आदेशों का पालन न होना एक गंभीर चेतावनी है। जहां एक ओर सरकार बच्चों की सुरक्षा को लेकर दिशा-निर्देश जारी कर रही है, वहीं दूसरी ओर मेडिकल स्टोरों की मनमानी इन आदेशों की धज्जियां उड़ा रही है।
जरूरत है कि औषधि निरीक्षक टीम और स्थानीय प्रशासन तुरंत कार्रवाई करे, ताकि किसी भी बच्चे की जान इन “खुली बिक्री वाली दवाओं” की भेंट न चढ़े।
“बच्चों की दवा खिलाने से पहले डॉक्टर की सलाह लें — लापरवाही नहीं, सजगता ही है असली सुरक्षा।”