देहरादून, 31 अक्टूबर 2025
देहरादून की एक अदालत ने एक जघन्य अपराध में शामिल पिता को उसकी नाबालिग बेटी से लगातार तीन वर्षों तक दुष्कर्म करने के आरोप में 20 वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई है। अदालत ने दोषी पर 15 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। इसके अलावा, पीड़िता को 5 लाख रुपये का मुआवजा देने के आदेश जारी किए गए हैं।
विशेष न्यायाधीश (पोक्सो) अर्चना सागर का निर्णय
यह फैसला विशेष न्यायाधीश (पोक्सो) अर्चना सागर की अदालत ने सुनाया। अदालत ने कहा कि यह अपराध न केवल मानवता के खिलाफ है बल्कि पिता-पुत्री के पवित्र रिश्ते को कलंकित करने वाला है। दोषी द्वारा की गई हरकत समाज के लिए निंदनीय उदाहरण है। अदालत ने आदेश दिया कि अर्थदंड न देने की स्थिति में दोषी को एक माह का अतिरिक्त साधारण कारावास भुगतना पड़ेगा।
राज्य सरकार की ओर से मिलेगा मुआवजा
अदालत ने सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को निर्देश दिया कि पीड़िता को राज्य सरकार की ओर से 5 लाख रुपये का प्रतिकर दिया जाए, जिससे उसकी शिक्षा, पुनर्वास और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
तीन वर्षों से बेटी पर हो रहा था अत्याचार
राज्य की ओर से विशेष लोक अभियोजन अल्पना थापा के अनुसार, मामला 9 जून 2024 को सामने आया था, जब एक महिला ने पटेलनगर कोतवाली में शिकायत दर्ज कराई। शिकायत में बताया गया कि उसकी 13 वर्षीय भतीजी अपनी मां की मृत्यु के बाद पिता के साथ रह रही थी।
6 जून 2024 को नाबालिग ने रोते हुए अपनी चाची को बताया कि उसका पिता पिछले तीन साल से लगातार उसके साथ दुष्कर्म कर रहा है। आरोपी बेटी से कहता था कि वह उसके साथ “एक बच्चा पैदा करेगा” और घटना किसी को बताने पर जान से मारने की धमकी देता था।
पुलिस ने तुरंत की कार्रवाई, 11 जून को हुई गिरफ्तारी
पीड़िता के बयान के आधार पर पटेलनगर कोतवाली पुलिस ने 9 जून 2024 को मुकदमा दर्ज किया और 11 जून को आरोपी को गिरफ्तार कर लिया।
मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए बयानों में पीड़िता ने बताया कि उसकी मां का निधन करीब 10 वर्ष पहले हुआ था। पिता शराबी स्वभाव का है। नशे में वह उसके कपड़े फाड़कर दुष्कर्म करता था और धमकाता था कि यदि उसने किसी को बताया तो उसे जान से मार देगा।
देहरादून में बसने के बाद भी जारी रहा अत्याचार
करीब दो वर्ष पहले दोषी अपनी बेटी को लेकर देहरादून के पटेलनगर क्षेत्र में आकर रहने लगा। यहां भी उसने वही अमानवीय कृत्य जारी रखा। अभियोजन पक्ष की ओर से सात गवाहों के बयान दर्ज किए गए। वहीं, आरोपी ने खुद को झूठा फंसाने का दावा किया, परंतु अदालत ने साक्ष्यों और गवाहियों के आधार पर उसे दोषी करार दिया।
अभियोजन पक्ष की मेहनत से मिला न्याय
इस पूरे मुकदमे में पैरोकार जतिंद्र कुमार की भूमिका महत्वपूर्ण रही। उन्होंने साक्ष्य और गवाहों के माध्यम से अदालत के सामने अपराध की गंभीरता को सिद्ध किया।
निष्कर्ष
देहरादून की अदालत का यह फैसला समाज को यह सख्त संदेश देता है कि नाबालिगों और महिलाओं के खिलाफ अपराध करने वालों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा। न्यायालय ने न केवल दोषी को कठोर सजा दी है, बल्कि पीड़िता के पुनर्वास के लिए भी संवेदनशील निर्णय लिया है। यह फैसला उन तमाम पीड़िताओं के लिए उम्मीद की किरण है जो न्याय की राह देख रही हैं।


