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Uttarakhand News: ट्यूशन पढ़ाकर पूरी की अपनी पढ़ाई, बिना कोचिंग बने IAS — प्रद्युम्न बिजल्वाण की प्रेरणादायक कहानी

दिनांक: 1 नवम्बर 2025 | स्थान: देहरादून/ऋषिकेश


ट्यूशन से शुरू हुआ संघर्ष, IAS बनकर किया नाम रोशन
उत्तराखंड की धरती ने एक बार फिर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। ऋषिकेश के प्रद्युम्न बिजल्वाण ने बिना किसी कोचिंग के UPSC परीक्षा में सफलता प्राप्त कर IAS अधिकारी बनने का गौरव हासिल किया है। सीमित संसाधनों के बावजूद उन्होंने मेहनत, आत्मविश्वास और समर्पण से यह साबित किया कि लक्ष्य बड़ा हो तो हालात मायने नहीं रखते।


साधारण परिवार से निकले असाधारण युवा
प्रद्युम्न एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता शिव प्रकाश बिजल्वाण एक वाहन चालक हैं, जो अपने परिश्रम से परिवार का पालन-पोषण करते हैं। आर्थिक परिस्थितियाँ सीमित होने के बावजूद प्रद्युम्न ने कभी हार नहीं मानी। अपनी पढ़ाई का खर्च उन्होंने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर खुद ही उठाया। यही नहीं, उन्होंने बिना किसी कोचिंग संस्थान की मदद लिए अपने दृढ़ निश्चय और अनुशासन से UPSC परीक्षा की तैयारी की।


UPSC 2024 में 98वीं रैंक से चमका उत्तराखंड का नाम
हाल ही में घोषित UPSC 2024 की आरक्षित सूची में प्रद्युम्न बिजल्वाण का नाम 98वीं रैंक पर शामिल हुआ। जैसे ही यह खबर सामने आई, पूरे उत्तराखंड में खुशी की लहर दौड़ गई। सोशल मीडिया से लेकर गांव-गांव तक प्रद्युम्न की इस उपलब्धि की चर्चा होने लगी।


महिला आयोग अध्यक्ष कुसुम कंडवाल ने की मुलाकात, दी बधाई
उत्तराखंड राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष कुसुम कंडवाल स्वयं प्रद्युम्न बिजल्वाण के ऋषिकेश स्थित आवास पर पहुंचीं। उन्होंने प्रद्युम्न को मिठाई खिलाकर शुभकामनाएं दीं और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की।

इस मौके पर उन्होंने कहा —

“प्रद्युम्न की सफलता पूरे उत्तराखंड के लिए गर्व का विषय है। उन्होंने यह दिखाया है कि मजबूत इच्छाशक्ति और सतत परिश्रम से हर कठिनाई को पार किया जा सकता है। उनकी सफलता युवाओं के लिए प्रेरणा है।”


प्रद्युम्न का लक्ष्य — पहाड़ के बच्चों की शिक्षा में सहयोग
अपनी सफलता पर प्रद्युम्न ने कहा कि इस मुकाम तक पहुंचने में माता-पिता के आशीर्वाद और उनके संघर्ष का बड़ा योगदान रहा। उन्होंने बताया कि आने वाले समय में वे समाज के वंचित वर्ग और पहाड़ों के दूरस्थ इलाकों के बच्चों की शिक्षा के लिए कार्य करना चाहते हैं, ताकि कोई प्रतिभा आर्थिक तंगी की वजह से पीछे न रह जाए।


निष्कर्ष:
प्रद्युम्न बिजल्वाण की कहानी उत्तराखंड के युवाओं के लिए प्रेरणा है। यह साबित करती है कि सीमित संसाधन कभी बाधा नहीं बनते, अगर इरादे मजबूत हों। उनकी सफलता न केवल उनके परिवार के लिए गर्व का क्षण है, बल्कि पूरे राज्य के लिए सम्मान का विषय है।

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