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Uttarakhand News: रेलवे ने हादसे के लिए घायल हाथी को ही ठहराया जिम्मेदार, बोले अधिकारी – ‘गजराज की गलती’

दिनांक: 3 नवम्बर 2025 | स्थान: ऊधम सिंह नगर (उत्तराखंड)


गुलरभोज-लालकुंआ ट्रैक पर जख्मी हुआ हाथी, तड़पता रहा कई घंटों तक
ऊधम सिंह नगर जिले के गुलरभोज-लालकुंआ रेलवे ट्रैक पर हुए हादसे में एक जंगली हाथी गंभीर रूप से घायल हो गया। ट्रेन की चपेट में आने के बाद हाथी कई घंटों तक वहीं तड़पता रहा। सूचना मिलने पर वन विभाग और रेलवे अधिकारियों ने राहत-बचाव कार्य शुरू किया।


मथुरा से पहुंची विशेष टीम कर रही इलाज की कोशिश
हाथी के उपचार के लिए मथुरा से एक विशेष पशु चिकित्सा टीम मौके पर पहुंची है, जो लगातार घायल गजराज को राहत देने की कोशिश कर रही है। डॉक्टरों के अनुसार हाथी की स्थिति नाजुक बनी हुई है, लेकिन उसका इलाज पूरी सावधानी से किया जा रहा है।


रेलवे ने कहा – हाथी की गलती, अचानक ट्रैक पर आ गया था
इस पूरे मामले में रेलवे अधिकारियों का रुख हैरान करने वाला है। विभाग ने हादसे की जिम्मेदारी लेने से इनकार करते हुए कहा है कि यह “हाथी की गलती” थी। अधिकारियों के अनुसार, हाथी अचानक ट्रेन के सामने आ गया, जिससे चालक को ब्रेक लगाने का मौका नहीं मिला।

रेलवे ने यह भी साफ किया कि विभागीय जांच की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह घटना “प्राकृतिक रूप से” हुई है।


पशुप्रेमियों ने जताया विरोध, कहा – लापरवाही छिपा रहा रेलवे
वहीं पशुप्रेमियों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने रेलवे की इस दलील पर कड़ा विरोध जताया है। उनका कहना है कि रेलवे की लापरवाही और संवेदनहीनता के कारण यह दर्दनाक घटना हुई। उन्होंने आरोप लगाया कि वन क्षेत्र से गुजरने वाली ट्रेनों की गति निर्धारित सीमा (30 किमी प्रति घंटा) से अधिक होती है, जिससे ऐसे हादसे बार-बार हो रहे हैं।

पशुप्रेमियों ने हाथी के मामले की स्वतंत्र जांच की मांग की है ताकि जिम्मेदारी तय हो सके और भविष्य में इस तरह के हादसे रोके जा सकें।


लोको पायलट पर उठे सवाल — क्यों नहीं लगा पाया ब्रेक?
वन्यजीव क्षेत्र में रेलवे की ओर से 30 किमी प्रति घंटा की गति सीमा तय है। लेकिन स्थानीय लोगों और पर्यावरणविदों का कहना है कि हादसे के समय ट्रेन की रफ्तार अधिक थी। सवाल उठ रहे हैं कि अगर ट्रेन निर्धारित गति पर थी, तो लोको पायलट समय रहते ब्रेक क्यों नहीं लगा सका?


संवेदनशील क्षेत्रों में चाहिए मजबूत सुरक्षा उपाय
शनिवार को भी तिलपुर गांव के पास से गुजर रही एक विशेष ट्रेन की तेज रफ्तार से एक और हाथी बाल-बाल बचा था। विशेषज्ञों का कहना है कि वन क्षेत्रों में रेल मार्ग के दोनों ओर बेरिकेडिंग और सेंसिंग सिस्टम लगाना जरूरी है ताकि ऐसे हादसे की पुनरावृत्ति न हो।


रेलवे का बयान — चेतावनी बोर्ड लगाए गए हैं, समन्वय जारी है
इस मामले पर संजीव शर्मा, वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंधक (इज्जतनगर मंडल) ने कहा,

“वन क्षेत्र में रेल मार्ग के दोनों ओर सावधानी और चेतावनी के बोर्ड लगाए गए हैं। यह घटना हाथी के अचानक ट्रेन के सामने आने से हुई। इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए वन विभाग के साथ समन्वय स्थापित कर रूपरेखा तैयार की जाती है।”


निष्कर्ष:
जहां एक ओर घायल हाथी जिंदगी और मौत से जूझ रहा है, वहीं दूसरी ओर रेलवे और पशुप्रेमियों के बीच जिम्मेदारी तय करने की जंग छिड़ी हुई है। सवाल यह है कि क्या रेलवे वन्यजीवों की सुरक्षा को लेकर वास्तव में गंभीर है? जब तक वन क्षेत्रों से गुजरने वाली ट्रेनों की गति और सुरक्षा प्रणाली में सुधार नहीं होता, तब तक ऐसे हादसे “दुर्भाग्यपूर्ण संयोग” नहीं, बल्कि “प्रणाली की विफलता” माने जाएंगे।

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