देहरादून | दिनांक: 06 दिसंबर 2025
उत्तराखंड में लगातार बढ़ते वन्यजीव हमलों का मुद्दा अब देश की संसद में गूंज उठा है। पर्वतीय राज्य की जटिल भौगोलिक परिस्थितियों और व्यापक वन क्षेत्र के कारण उत्पन्न हो रहे मानव–वन्यजीव संघर्ष को लेकर लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में गंभीर चिंता जताई गई।
लोकसभा में अनिल बलूनी ने उठाई जनसुरक्षा की आवाज
लोकसभा में गढ़वाल से सांसद एवं भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख अनिल बलूनी ने कहा कि उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में वन्यजीव हमलों ने आम जनजीवन को असुरक्षित बना दिया है।
उन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों का घर से बाहर निकलना, बच्चों का स्कूल जाना और महिलाओं का जंगलों में चारा लेने जाना तक खतरे से खाली नहीं रहा। लगातार हो रही जनहानि और घायल होने की घटनाओं से गांवों में डर और असुरक्षा का माहौल है।
ठोस और त्वरित रणनीति की पैरवी
सांसद बलूनी ने वन्यजीव हमलों की रोकथाम के लिए त्वरित, ठोस और प्रभावी रणनीति लागू करने पर जोर दिया। उन्होंने जानकारी दी कि इस विषय को वे पूर्व में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव के समक्ष भी रख चुके हैं।
साथ ही, उन्होंने राज्य के वन विभाग को हमलों की नियमित निगरानी और दिन-प्रतिदिन रिपोर्टिंग व्यवस्था लागू करने का सुझाव दिया, ताकि समय रहते कार्रवाई सुनिश्चित की जा सके। बलूनी ने दो टूक कहा कि जनसुरक्षा सर्वोपरि है और इसमें किसी तरह की ढिलाई स्वीकार्य नहीं।
राज्यसभा में महेंद्र भट्ट ने रखे चौंकाने वाले आंकड़े
राज्यसभा में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष एवं सांसद महेंद्र भट्ट ने उत्तराखंड में वन्यजीव हमलों के 25 वर्षों के आंकड़े सदन के सामने रखे।
उन्होंने बताया कि इस अवधि में वन्यजीवों के हमलों में 1264 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 6519 लोग घायल हुए हैं। केवल इसी वर्ष अब तक भालू के हमलों में 5 और गुलदार के हमलों में 19 लोगों की जान जा चुकी है, वहीं करीब 130 लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं।
पहाड़ी जिलों की स्थिति पर विशेष चिंता
भट्ट ने पौड़ी, चमोली, उत्तरकाशी, टिहरी, रुद्रप्रयाग समेत अन्य पर्वतीय जिलों में हाल के दिनों में हुई घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि समस्या अब स्थानीय नहीं, बल्कि राज्यव्यापी संकट का रूप ले चुकी है।
केंद्र से विशेष पैकेज और नीति की मांग
महेंद्र भट्ट ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्य के लिए विशेष कार्ययोजना बनाई जाए और इससे निपटने के लिए अधिक आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जाए।
उन्होंने मृतकों के परिवारों को दी जाने वाली अनुग्रह राशि बढ़ाने और घायलों के पूरे इलाज का खर्च सरकार द्वारा वहन करने के लिए एक स्पष्ट और मानवीय नीति बनाने की मांग भी रखी।
निष्कर्ष
संसद में उठी यह आवाज साफ संकेत देती है कि उत्तराखंड में मानव–वन्यजीव संघर्ष अब एक गंभीर राष्ट्रीय चिंता बन चुका है। जब तक विशेष कार्ययोजना, तकनीकी समाधान और पर्याप्त आर्थिक सहायता के साथ सुनियोजित प्रयास नहीं किए जाएंगे, तब तक पहाड़ों में आम लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना चुनौती बना रहेगा। जनहानि को रोकने के लिए अब निर्णायक कदम उठाने की जरूरत है।


