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आठ साल बाद बेगुनाही की मुहर: युवा वैज्ञानिक निशांत अग्रवाल को देशद्रोह के आरोप से राहत, मां और पत्नी ने झेला सामाजिक तिरस्कार, बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले से लौटी मुस्कान

रुड़की (हरिद्वार) / नागपुर | उत्तराखंड | दिनांक: 7 दिसंबर 2025

देशद्रोह जैसे गंभीर आरोप की छाया में आठ वर्ष बिताने के बाद आखिरकार रुड़की के युवा वैज्ञानिक निशांत अग्रवाल के माथे से कलंक मिट गया। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने 1 दिसंबर 2025 को ऐतिहासिक फैसले में उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया। इस फैसले ने न केवल एक वैज्ञानिक को न्याय दिलाया, बल्कि उस परिवार को भी राहत दी, जिसने वर्षों तक अघोषित जेल का दर्द झेला।


यंग साइंटिस्ट से देशद्रोही तक का दर्दनाक सफर

रुड़की निवासी निशांत अग्रवाल महज 27 वर्ष की उम्र में नागपुर स्थित ब्रह्मोस एयरोस्पेस में वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत थे। मिसाइल निर्माण जैसे संवेदनशील प्रोजेक्ट में काम करने वाले निशांत को अक्टूबर 2018 में डीआरडीओ द्वारा ‘यंग साइंटिस्ट अवार्ड’ से नवाजा गया था। इससे कुछ महीने पहले ही उनका विवाह हुआ था और जीवन सुनहरे सपनों की ओर बढ़ रहा था।


8 अक्तूबर 2018 की सुबह, जिसने सब कुछ बदल दिया

8 अक्तूबर 2018 की तड़के करीब सुबह साढ़े चार बजे यूपी और महाराष्ट्र एटीएस की टीम उनके घर पहुंची। तलाशी के दौरान लैपटॉप और मोबाइल जब्त किए गए और निशांत को पाकिस्तान को ब्रह्मोस मिसाइल तकनीक लीक करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। एक पल में वैज्ञानिक परिवार देशद्रोह के आरोपों के घेरे में आ गया।


पत्नी और मां की अघोषित कैद

निशांत की पत्नी क्षितिजा अग्रवाल, जिनकी शादी को महज साढ़े पांच महीने हुए थे, के लिए वह दिन एक काली रात साबित हुआ। पति जेल में थे, लेकिन पत्नी और मां समाज की नजरों में कठघरे में खड़ी थीं।
नेहरू नगर, रुड़की स्थित ससुराल में रह रहीं क्षितिजा और सास ऋतु अग्रवाल ने हर दिन सवालों, तानों और खामोश आरोपों के बीच बिताया।


चार्जशीट और लंबी कानूनी लड़ाई

करीब नौ महीने बाद नागपुर सेशन कोर्ट में चार्जशीट दाखिल हुई। इसके बाद लगभग छह साल तक मुकदमे की सुनवाई चली। परिवार को विश्वास था कि कोई सबूत नहीं है, क्योंकि फोरेंसिक जांच में भी डाटा लीक होने का प्रमाण नहीं मिला
फिर भी 3 जून 2024 को सेशन कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुना दी, जिससे परिवार के पैरों तले जमीन खिसक गई।


उम्मीद नहीं छोड़ी, हाईकोर्ट में लड़ी अंतिम लड़ाई

कठिन हालात के बावजूद परिवार ने हार नहीं मानी। फैसले के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट की शरण ली गई। पत्नी क्षितिजा ने बताया कि जेल में रहते हुए निशांत ने बेटे को जन्म देने के बावजूद उसे जेल लाने से मना कर दिया था। उन्हें पूरा यकीन था कि एक दिन सच्चाई सामने आएगी


हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: सबूत नहीं, अपराध नहीं

1 दिसंबर 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने स्पष्ट किया कि

  • लैपटॉप से कोई डाटा ट्रांसफर साबित नहीं हुआ

  • जो सामग्री मिली, वह ट्रेनिंग के दौरान का अनुपयोगी डेटा था

  • देशद्रोह का आरोप साबित करने लायक कोई ठोस साक्ष्य नहीं है

इसके साथ ही निशांत अग्रवाल को सभी आरोपों से पूरी तरह बरी कर दिया गया।


सामाजिक तिरस्कार और रिश्तों की कसौटी

इस पूरे दौर में एटीएस की टीम रुड़की भी पहुंची थी और एक अन्य लैपटॉप जब्त किया गया था। उस दौरान पड़ोसियों की निगाहें और बदले व्यवहार ने परिवार को भीतर तक तोड़ दिया।
निशांत की मां ऋतु अग्रवाल कहती हैं, “सजा के बाद सांस तो ले रही थी, लेकिन जी नहीं रही थी। बस एक भरोसा था कि बेटा निर्दोष है।”


निष्कर्ष

युवा वैज्ञानिक निशांत अग्रवाल का मामला सिर्फ एक व्यक्ति की कानूनी लड़ाई नहीं, बल्कि न्याय, धैर्य और विश्वास की मिसाल है। आठ साल बाद सच की जीत ने यह साबित कर दिया कि आरोप चाहे कितने भी गंभीर क्यों न हों, सबूत के बिना न्याय संभव नहीं। यह फैसला उन तमाम परिवारों के लिए उम्मीद की किरण है, जो वर्षों तक सामाजिक और मानसिक पीड़ा झेलते हैं, लेकिन सच पर भरोसा बनाए रखते हैं।

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