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Ankita Murder Case: चांद की चाल से खुला उस अंधेरी रात का सच, पुलकित का झूठ इसी रिपोर्ट ने किया बेनकाब

देहरादून | 1 जून 2025

उत्तराखंड के बहुचर्चित अंकिता भंडारी हत्याकांड में कोर्ट का फैसला आ चुका है। मुख्य आरोपी पुलकित आर्य, उसके सहयोगी सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता को अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। इस मामले में पुलिस की गहराई से की गई जांच और वैज्ञानिक सबूतों की भूमिका बेहद अहम रही।

 चांद की रोशनी पर दिया गया बयान बना जांच की दिशा मोड़ने वाला सबूत

18 सितंबर 2022 की रात हुई घटना के संबंध में पुलकित ने पुलिस को बताया था कि रात 9 बजे वह अंकिता के साथ नहर की पटरी पर मौजूद था। उसने दावा किया कि उस वक्त काफी प्राकृतिक रोशनी थी और उसने अंकिता को बचाने की कोशिश की।

हालांकि, पुलिस ने इस बयान की पुष्टि के लिए केंद्रीय वेधशाला कोलकाता से संपर्क किया और एक ई-मेल रिपोर्ट मंगवाई गई। रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि:

  • जिस स्थान और तारीख की बात है, वहां चांद रात 11 बजे निकला था
  • जबकि घटना रात 9 बजे की है
  • यानी उस वक्त कोई चांद की रोशनी नहीं हो सकती थी

 साक्ष्य नंबर 123: जिसने कोर्ट में साबित किया झूठ

वेधशाला से प्राप्त ई-मेल को “साक्ष्य नंबर 123” के रूप में अदालत में पेश किया गया। यह तकनीकी दस्तावेज साबित करता है कि घटना के वक्त न तो पर्याप्त रोशनी थी, न ही कोई ‘दुर्घटनावश गिरने’ का दावा विश्वसनीय

 पुलिस की जांच: 40,000 फोन कॉल और 800 सीसीटीवी फुटेज खंगाले

इस केस की गहन जांच में पुलिस ने कोई कसर नहीं छोड़ी:

  • 40,000 मोबाइल कॉल डेटा खंगाले गए
  • 800 से अधिक सीसीटीवी फुटेज की जांच की गई
  • खगोल विज्ञान की मदद ली गई ताकि घटना के वक्त की परिस्थितियों को वैज्ञानिक आधार पर समझा जा सके

❝ कृष्ण पक्ष की अष्टमी थी वो रात ❞

पुलिस को पहले ही शक था, क्योंकि घटना वाली रात कृष्ण पक्ष की अष्टमी थी — यानी स्वाभाविक रूप से चांद की रोशनी बहुत कम या न के बराबर होती है। इसी आधार पर सीआरपीसी की धारा 91 के तहत कोलकाता वेधशाला से आधिकारिक जवाब मंगाया गया।

नतीजा: पुलकित और साथियों का झूठ उजागर

वेधशाला की रिपोर्ट के अनुसार:

“घटना स्थल पर उस रात चांद रात 11 बजे निकला था, जबकि घटना रात 9 बजे की है। यानी, जो प्राकृतिक रोशनी का हवाला पुलकित ने दिया, वह वैज्ञानिक रूप से असंभव था।”


फैसला: विज्ञान और कानून के तालमेल से मिला इंसाफ

इस केस ने यह साफ कर दिया कि जब तकनीक, विज्ञान और जांच एजेंसियां मिलकर काम करती हैं, तो सच को कोई छुपा नहीं सकता — न ही रात का अंधेरा और न ही झूठे बयान।

अंकिता को मिला न्याय, और भारतीय जांच प्रणाली ने एक मजबूत उदाहरण पेश किया।


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  • पुलकित की कहानी कैसे बनी अदालत में खुद के खिलाफ गवाही
  • पुलिस की डिजिटल फॉरेंसिक टीम की भूमिका
  • अब आगे क्या? जेल में तीनों दोषियों की स्थिति पर विशेष रिपोर्ट जल्द

 

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