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Dehradun: आपदा प्रभावितों से मिले प्रधानमंत्री मोदी, धराली की दर्दभरी दास्तां सुनकर हुए भावुक

देहरादून, 12 सितंबर 2025

उत्तराखंड दौरे पर पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जौलीग्रांट एयरपोर्ट स्थित राज्य अतिथि गृह में धराली गांव के आपदा प्रभावित ग्रामीणों ने मुलाकात की। इस दौरान ग्रामीण अपने दर्द को साझा करते हुए बेहद भावुक हो गए।


बेटे को खोने का ग़म, आंसुओं में डूबी कामेश्वरी देवी

मुलाकात के दौरान धराली गांव की कामेश्वरी देवी अपने जवान बेटे को खोने के दुख से इतनी टूट चुकी थीं कि प्रधानमंत्री मोदी के सामने कुछ कह भी नहीं पाईं। उनकी आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे। उन्होंने बस इतना कहा – “इस आपदा ने हमसे सब कुछ छीन लिया। रोजगार गया और मेरा बड़ा बेटा आकाश भी चला गया।”


गांव के प्रतिनिधियों ने सुनाई आपदा की दास्तां

धराली से प्रधानमंत्री से मिलने पहुंचे लोगों में ग्राम प्रधान अजय नेगी, बीडीसी प्रतिनिधि सुशील पंवार, महिला मंगल दल अध्यक्ष सुनीता देवी और कामेश्वरी देवी शामिल रहे। सभी ने नम आंखों से 5 अगस्त की आपदा का मंजर प्रधानमंत्री के सामने रखा।


पल भर में उजड़ गया घर-परिवार

ग्राम प्रधान अजय नेगी ने बताया कि इस आपदा में उन्होंने अपने चचेरे भाई समेत कई प्रियजनों को खो दिया। वहीं, सुशील पंवार ने अपने छोटे भाई और उसके पूरे परिवार को खोने की पीड़ा साझा की। सुनीता देवी ने कहा कि उनका घर, होमस्टे और बगीचे – जीवनभर की कमाई – एक पल में जमींदोज हो गए।


सिर्फ एक शव मिला, बाकी अब भी लापता

आपदा में लापता ग्रामीणों में अब तक केवल कामेश्वरी देवी के बेटे आकाश का शव ही बरामद हो सका है। बाकी कई परिवार अब भी अपने लापता प्रियजनों की तलाश में भटक रहे हैं।


प्रधानमंत्री को सौंपी विस्तृत रिपोर्ट

ग्राम प्रधान अजय नेगी ने बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को गांव की तबाही की विस्तृत रिपोर्ट सौंपी। इसमें पुनर्वास, रोजगार उपलब्ध कराने और कृषि ऋण माफी जैसी मांगें रखी गईं।


पीएम मोदी का आश्वासन

प्रधानमंत्री मोदी ने ग्रामीणों को भरोसा दिलाया कि केंद्र और राज्य सरकार मिलकर पुनर्वास और रोजगार पर काम कर रही हैं। उन्होंने कहा कि हर आपदा प्रभावित परिवार को हर संभव सहायता दी जाएगी।


आपदा का घाव अब भी ताज़ा

धराली गांव के इन प्रभावितों से हुई मुलाकात ने यह साफ कर दिया कि आपदा ने केवल घर और संपत्ति ही नहीं छीनी, बल्कि दिलों पर भी गहरे घाव छोड़े हैं। यह दर्द आज भी गांव वालों की आंखों में साफ दिखाई देता है।

 

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