Dehradun, September 16, 2025
देहरादून जिले के विलासपुर-कांडली स्थित मंसदावाला गांव में आई प्राकृतिक आपदा ने एक परिवार की खुशियां छीन लीं। 25 जून को विवाह के पवित्र बंधन में बंधे पंकज और उजाला का भविष्य सपनों से भरा हुआ था। लेकिन 16 सितंबर की सुबह तमसा नदी के उफान ने इन सपनों को मलबे में दफ्न कर दिया।
तीन महीने पूरे होने से पहले टूटा रिश्ता
उजाला और पंकज की शादी को अभी तीन महीने भी पूरे नहीं हुए थे। दोनों ने मिलकर मसंदावाला गांव में बेहतर जिंदगी के लिए योजनाएं बनाई थीं। पंकज दिहाड़ी मजदूरी करके कच्चे मकान से आगे बढ़कर एक नया घर बनाने की तैयारी कर रहा था। इस महीने की 25 तारीख को दोनों शादी के तीन महीने पूरे होने की खुशी मनाने वाले थे, लेकिन किस्मत ने उन्हें ऐसा मौका नहीं दिया।
बाढ़ का कहर, कई लोग बहे
16 सितंबर की सुबह आई भीषण बारिश से तमसा नदी का जलस्तर अचानक बढ़ गया। तेज बहाव में मजदूर पंकज, मोनू, प्रीतम और फुसिया बह गए। ग्रामीणों और प्रशासन की कोशिशों से पंकज और मोनू के शव बरामद कर लिए गए, लेकिन प्रीतम और फुसिया की तलाश अभी भी जारी है।
घर में मलबा, मां और पत्नी बेघर
बाढ़ के चलते पंकज का घर भी पूरी तरह मलबे में दब गया। घर का सामान बह गया और खाने-पीने तक की समस्या खड़ी हो गई। बेबस होकर उसकी मां जगवती और पत्नी उजाला को स्थानीय लोगों ने नजदीकी आंगनबाड़ी केंद्र में शरण दी। गुरुवार को पंकज का अंतिम संस्कार किया गया।
उजाला का गहरा सदमा, मां की बेकली
पति की मौत ने उजाला को तोड़कर रख दिया है। वह बार-बार बेहोश हो रही है और होश में आते ही पंकज का नाम पुकारती है। उसकी यह हालत पूरे गांव को भावुक कर रही है।
वहीं, मां जगवती का रो-रोकर बुरा हाल है। बेटा खोने और घर उजड़ने के गम से वह संभल नहीं पा रही हैं।
गांव में मलबा और नुकसान
गांव में चारों ओर तबाही का मंजर है। नदी का मलबा कई घरों और खेतों में भर गया है। ग्रामीण मिलकर मलबा हटाने की कोशिश कर रहे हैं। वार्ड मेंबर प्रीति थापा, पूर्व ग्राम प्रधान लव कुमार तमांग और पूर्व उप प्रधान चंद्रमणि पेटवाल प्रभावित परिवारों की मदद में जुटे हैं।
वार्ड मेंबर प्रीति थापा ने बताया कि सबसे ज्यादा नुकसान जगवती के परिवार को हुआ है। बेटा गुजर गया, घर मलबे में दब गया और जीने का सहारा टूट गया। ग्रामीण मदद कर उनका हौसला बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।
निष्कर्ष
मंसदावाला की यह त्रासदी सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि उन सभी गांवों की कहानी है जो पहाड़ों में हर साल प्राकृतिक आपदाओं का सामना करते हैं। पंकज के जाने से उजाला और उसकी मां की जिंदगी अंधकारमय हो गई है। अब उनका सहारा सिर्फ ग्रामीणों की मदद और प्रशासन की राहत है। यह घटना फिर से याद दिलाती है कि पहाड़ी इलाकों में आपदा प्रबंधन को और सुदृढ़ करना समय की मांग है।