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Uttarakhand: दून की बदलती फिजा, जलवायु परिवर्तन से बढ़ रहा आपदा का खतरा

देहरादून (उत्तराखंड), 20 सितम्बर 2025

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून जलवायु परिवर्तन की चपेट में तेजी से आ रही है। बीते दो दशकों में यहां के पर्यावरणीय हालात खतरनाक स्तर पर पहुंच गए हैं। वन आवरण की लगातार कमी, प्रदूषण और शहरी विस्तार ने मिलकर न केवल तापमान को बढ़ाया है बल्कि आपदाओं का खतरा भी कई गुना बढ़ा दिया है।


24 साल में 684 हेक्टेयर घटा वन आवरण

देवभूमि उत्तराखंड विश्वविद्यालय के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के शोध में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि वर्ष 2001 से 2024 तक दून में 684 हेक्टेयर वन आवरण घट गया। इससे 443 किलो टन कार्बन-डाई-ऑक्साइड वायुमंडल में घुल चुकी है। इसका सीधा असर मौसम के मिजाज पर पड़ा है—गर्मी बढ़ी, पानी के स्रोत घटे और जैव विविधता संकट में आ गई।


इंटरनेशनल जर्नल में प्रकाशित शोध

सिविल इंजीनियरिंग विभाग के शोधार्थी राहुल का शोध पत्र अगस्त माह में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरमेंट एंड क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित हुआ है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2020 में जहां देहरादून में 1,24,000 हेक्टेयर प्राकृतिक वन थे, वहीं 2024 तक इसमें 41 हेक्टेयर की और कमी दर्ज की गई। इस कटाई से लगभग 12.4 किलो टन कार्बन-डाई-ऑक्साइड अतिरिक्त रूप से वातावरण में शामिल हुई, जिसने जलवायु परिवर्तन की गति और बढ़ा दी।


पर्यटन और शहरीकरण बने बड़ी चुनौती

शोध में यह भी बताया गया है कि वर्ष 2019 से 2025 के बीच देहरादून और उत्तराखंड में पर्यटन में लगभग 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई। कोविड-19 काल में इसमें गिरावट आई थी, लेकिन उसके बाद तेजी से उछाल दर्ज किया गया। बड़ी संख्या में पर्यटकों की आमद से कूड़े-कचरे, प्रदूषण और अवैध निर्माणों का दबाव बढ़ा, जिससे जंगलों को और नुकसान हुआ।


तापमान बढ़ा, जल स्रोत घटे

जंगलों की कटाई और लगातार हो रहे शहरी विस्तार से दून का औसत तापमान लगातार बढ़ रहा है। वहीं जल स्रोतों का स्तर घटने से पेयजल संकट गहराने लगा है। जैव विविधता पर भी इसका सीधा असर देखने को मिल रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह परिवर्तन अब केवल पर्यावरणीय नहीं बल्कि सामाजिक-आर्थिक संकट का रूप ले चुका है।


निष्कर्ष

देहरादून में तेजी से बदलता पर्यावरण इस बात का संकेत है कि यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले वर्षों में स्थिति और भयावह हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि शहरी विस्तार पर नियंत्रण, वन संरक्षण और पर्यटन प्रबंधन के लिए ठोस नीतियां बनानी होंगी। वरना राजधानी दून की बदलती फिजा न केवल आपदाओं को न्योता देगी बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी बड़ा खतरा बन जाएगी।

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