तारीख: 11 अक्टूबर 2025
स्थान: देहरादून, उत्तराखंड
देहरादून की पहचान ‘घंटाघर’ फिर चर्चा में
देहरादून के ऐतिहासिक घंटाघर की घड़ियों की टिक-टिक एक बार फिर थम गई है। करोड़ों रुपये की लागत से हुए रिनोवेशन के कुछ ही दिनों बाद घड़ियाँ बंद होने से स्थानीय व्यापारियों और नागरिकों में नाराजगी फैल गई है। लोगों का कहना है कि इससे न केवल घंटाघर की पहचान और सौंदर्य पर असर पड़ा है, बल्कि आने-जाने वालों को समय देखने में भी असुविधा हो रही है।
व्यापारियों ने जताई नाराजगी, निगम से की कार्रवाई की मांग
महानगर कांग्रेस व्यापार प्रकोष्ठ के अध्यक्ष सुनील कुमार बांगा ने नाराजगी जताते हुए कहा कि “देहरादून का घंटाघर शहर की शान है, लेकिन अफसोस की बात है कि रिनोवेशन के एक महीने बाद ही घड़ियाँ बंद पड़ गईं। यह शहर की प्रतिष्ठा के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।”
उन्होंने बताया कि रिनोवेशन कार्य पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए थे। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 7 सितंबर को इसका उद्घाटन किया था, जिसमें महापौर सौरभ थपलियाल और विधायक खजान दास भी मौजूद रहे।
स्मार्ट सिटी मिशन पर उठे सवाल
व्यापारियों ने सवाल उठाया है कि यदि यह रिनोवेशन स्मार्ट सिटी मिशन के तहत हुआ है, तो फिर घड़ियाँ बंद होने की जिम्मेदारी स्मार्ट सिटी एजेंसी की बनती है।
सुनील बांगा ने कहा कि “जिस एजेंसी ने यह प्रोजेक्ट किया, उसने घड़ियों की गारंटी दी होगी। अब जब घड़ियाँ बंद हैं, तो स्मार्ट सिटी अधिकारियों को तुरंत मरम्मत करवानी चाहिए।”
उन्होंने विधायक खजान दास से भी मामले में हस्तक्षेप की मांग करते हुए कहा कि “घंटाघर केवल एक स्मारक नहीं, बल्कि देहरादून की पहचान है, इसे सही हालत में बनाए रखना प्रशासन का दायित्व है।”
हर पांच साल बाद मरम्मत, फिर भी नहीं होता स्थायी समाधान
व्यापारियों ने कहा कि घंटाघर के नाम पर हर पांच साल में करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं, लेकिन हर बार स्थायी समाधान की कमी देखने को मिलती है।
रिनोवेशन के बाद भी यदि घड़ियाँ बंद हो जाती हैं, तो यह प्रशासनिक लापरवाही का संकेत है।
घंटाघर की घड़ियाँ क्यों हैं खास
देहरादून का घंटाघर न केवल एक ऐतिहासिक धरोहर है बल्कि शहर की पहचान और दिशा सूचक केंद्र भी माना जाता है। शहर में प्रवेश करने वाले हर व्यक्ति के लिए घंटाघर का दृश्य देहरादून की विरासत का प्रतीक है।
घड़ियों का बंद होना केवल एक तकनीकी खराबी नहीं, बल्कि शहर के गौरव की खामोशी के समान है।
व्यापारियों की एकजुटता और आगे की कार्रवाई
इस मौके पर व्यापार प्रकोष्ठ के अलावा सुरेश गुप्ता, मनोज कुमार, राजेश मित्तल, अरुण कोहली, राहुल कुमार, रजत कुमार, आमिर खान, सनी सोनकर, विशाल खेड़ा, सोनू मेहंदीरत्ता और राजेंद्र सिंह घई सहित कई स्थानीय व्यापारी उपस्थित रहे।
सभी ने एक स्वर में नगर निगम और स्मार्ट सिटी प्रशासन से घंटाघर की घड़ियों की तत्काल मरम्मत की मांग की।
निष्कर्ष
देहरादून का घंटाघर सिर्फ एक स्मारक नहीं, बल्कि शहर की आत्मा है।
इसके घड़ियों की टिक-टिक थमना नागरिकों के गर्व को झकझोरने जैसा है। व्यापारियों की मांग है कि प्रशासन जल्द से जल्द इसकी मरम्मत कर घंटाघर की पहचान को पुनः जीवंत करे।
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस बार स्थायी समाधान निकाला जाए ताकि भविष्य में “देहरादून की घड़ी” फिर कभी खामोश न हो।