देहरादून, 24 जून 2025
उत्तराखंड में प्रस्तावित त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। नैनीताल हाईकोर्ट द्वारा राज्य सरकार के आरक्षण आदेश पर रोक लगाने के बाद अब पंचायत चुनाव की अधिसूचना भी स्थगित हो सकती है। राज्य निर्वाचन आयोग आज मंगलवार को इस पर निर्णय लेगा।
क्या है मामला?
राज्य सरकार ने 11 जून 2025 को पंचायत चुनावों के लिए आरक्षण आदेश जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि पूर्व में लागू आरक्षण को शून्य मानते हुए इस बार का आरक्षण “प्रथम आरक्षण” माना जाएगा। इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, जहां याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह निर्णय संविधान और सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के खिलाफ है।
सोमवार को हाईकोर्ट ने इस आरक्षण आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी, जिससे शनिवार को जारी की गई पंचायत चुनाव अधिसूचना पर भी असर पड़ सकता है।
क्या थी अधिसूचना की समयरेखा?
- 22 जून (शनिवार): राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी की थी।
- 25 जून से: नामांकन प्रक्रिया शुरू होनी थी।
- 22 जून से: राज्य भर में आचार संहिता लागू कर दी गई थी।
लेकिन हाईकोर्ट के आदेश के बाद अब ये पूरी प्रक्रिया ठहर सकती है।
निर्वाचन आयोग की स्थिति
राज्य निर्वाचन आयुक्त सुशील कुमार ने बताया,
“हम हाईकोर्ट के आदेश की प्रमाणित प्रति का इंतजार कर रहे हैं। आदेश मिलने के बाद अधिवक्ताओं से सलाह कर निर्णय लिया जाएगा। आदेश के अनुपालन में अधिसूचना को स्थगित किया जा सकता है।”
सोमवार को देर शाम तक आयोग के अधिकारी हाईकोर्ट के आदेश की प्रति नहीं मिलने के कारण कोई औपचारिक निर्णय नहीं ले सके। अब मंगलवार को जैसे ही आदेश की कॉपी प्राप्त होगी, अधिसूचना के स्थगन का फैसला लिया जाएगा।
क्या हो सकते हैं परिणाम?
- यदि अधिसूचना स्थगित होती है, तो 25 जून से शुरू होने वाली नामांकन प्रक्रिया टल जाएगी।
- आचार संहिता स्वतः स्थगित मानी जाएगी जब तक कि नई अधिसूचना जारी न हो।
- पंचायत चुनाव की नई तारीखें तय होने में देरी हो सकती है।
पृष्ठभूमि में क्या है आरक्षण विवाद?
उत्तराखंड में पंचायत चुनावों में आरक्षण रोटेशन प्रणाली से लागू होता है। सरकार के नए आदेश के अनुसार पिछले आरक्षण चक्रों को शून्य मानते हुए इस बार को पहला आरक्षण चक्र माना गया, जिससे कई आरक्षित वर्गों के प्रतिनिधियों ने नाराजगी जताई और इसे न्यायिक चुनौती दी।
अब निगाहें राज्य निर्वाचन आयोग के मंगलवार के फैसले पर टिकी हैं, जो तय करेगा कि पंचायत चुनाव समय पर होंगे या फिर राज्य को एक बार फिर से चुनावी असमंजस से गुजरना पड़ेगा।
पंचायतों में लोकतंत्र की बुनियाद हिलने न पाए, इसी संतुलन के साथ आयोग को अब अगला रास्ता तय करना है।