स्थान: जौनसार-बावर, देहरादून | चुनाव विशेष रिपोर्ट
लोक परंपरा और राजनीति का अनोखा संगम: ‘लोटा-नमक’ बना चुनावी हथियार
उत्तराखंड के जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर में पंचायत चुनाव की सरगर्मी चरम पर है। प्रचार-प्रसार की होड़ में नेता एक बार फिर वर्षों पुरानी लोक परंपरा – लोटा-नमक की सौगंध का सहारा ले रहे हैं।
यह कोई चुनावी ड्रामा नहीं, बल्कि सदियों पुरानी परंपरा है, जिसे आज भी ग्रामीण समाज बड़े विश्वास और आस्था से निभाता है।
क्या है लोटा-नमक की सौगंध?
इस प्रथा के अनुसार—
कोई व्यक्ति या पूरा गांव अपने ईष्ट देवता को साक्षी मानकर, पानी से भरे लोटे में नमक डालकर ये वादा करता है कि वह जिस वचन को ले रहा है, उससे कभी पीछे नहीं हटेगा।
सांस्कृतिक मान्यता यह भी है कि यदि वचन तोड़ा गया तो उसका दुष्परिणाम सात पीढ़ियों तक भुगतना पड़ सकता है।
कैसे निभाई जा रही है परंपरा चुनाव में?
- प्रत्याशी गांव के मुखियों को एक स्थान पर एकत्र करते हैं
- लोटा और नमक के साथ उन्हें अपने पक्ष में वोट देने की सौगंध दिलवाई जाती है
- इसे लेकर गांव में एक सामूहिक सहमति बन जाती है, जिससे वादा निभाना सामाजिक जिम्मेदारी बन जाता है
इतिहास भी गवाह है इस परंपरा का प्रभाव
- 2014 लोकसभा चुनाव में चकराता के ककनोई क्षेत्र के तीन गांवों ने लोटा-नमक की सौगंध लेकर वोटिंग का बहिष्कार किया था
- वजह: सड़क निर्माण नहीं होने पर नाराज़गी
- प्रशासन के तमाम प्रयासों के बावजूद ग्रामीण अपनी सौगंध से नहीं हटे
नेता नाप रहे पगडंडियां, मौसम बना नहीं रुकावट
पंचायत चुनाव के पहले चरण में अब कुछ ही दिन बचे हैं।
वर्षा के बीच भी नेताजी गांव-गांव जाकर पथरीली पहाड़ियों को पार कर रहे हैं, लोटा-नमक की परंपरा को फिर से जीवंत कर मतदाताओं का भरोसा जीतने की कोशिश कर रहे हैं।
लोकाचार बनाम चुनाव प्रचार
यह परंपरा भले ही आस्थागत है, लेकिन वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में इसे रणनीतिक हथियार की तरह प्रयोग किया जा रहा है।
ग्रामीण क्षेत्रों में जहां विश्वास, लोकधर्म और देवता का भय अब भी गहराई से मौजूद है, वहां यह परंपरा वोट की गारंटी के रूप में देखी जा रही है।
किन क्षेत्रों में है प्रचलन?
- जौनसार-बावर (देहरादून)
- चकराता (उत्तराखंड)
- उत्तरकाशी व चमोली के सीमांत गांव
यहां आज भी न्याय, सौदे, विवाद समाधान और अब चुनाव भी इसी परंपरा के इर्द-गिर्द घूमते हैं।
सवाल जो उठते हैं…
- क्या सदियों पुरानी आस्था को राजनीति के लिए इस्तेमाल करना सही है?
- क्या इस तरह की प्रथाएं लोकतांत्रिक स्वतंत्रता को प्रभावित करती हैं?
- और सबसे अहम – क्या इस विश्वास का दुरुपयोग हो सकता है?
Samachar India News चुनावी मैदान से ऐसी ही दिलचस्प, सामाजिक-सांस्कृतिक रिपोर्ट्स लाता रहेगा। बने रहिए हमारे साथ।