देहरादून | दिनांक: 27 जून 2025
उत्तराखंड विधानसभा का मानसून सत्र अगस्त में प्रस्तावित है, लेकिन सत्र से पहले ही सियासी हलचल तेज हो गई है। सबसे बड़ा सवाल जो राजधानी के राजनीतिक गलियारों में तैर रहा है – “विपक्ष के तीखे सवालों का सामना करने सदन में इस बार कौन बनेगा धामी सरकार की ढाल?”
क्योंकि अब तक यह जिम्मेदारी निभाने वाले प्रेमचंद अग्रवाल पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं। उनकी जगह विधायी एवं संसदीय कार्य विभाग की जिम्मेदारी सीधे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के पास है। परंपरा यह रही है कि मुख्यमंत्री स्वयं सदन में फ्लोर मैनेजर की भूमिका नहीं निभाते, ऐसे में अब नजरें इस बात पर टिकी हैं कि धामी इस परंपरा को तोड़ेंगे या अपनी कैबिनेट के किसी अनुभवी चेहरे को यह दायित्व सौंपेंगे।
क्या सीएम खुद संभालेंगे सत्र का मोर्चा?
वर्तमान में मुख्यमंत्री धामी के पास 40 से अधिक विभाग हैं। उनकी प्रशासनिक व्यस्तता जगजाहिर है। ऐसे में राजनीतिक रणनीतिकार मानते हैं कि वे खुद सदन में विपक्षी हमलों से जूझने की बजाय किसी विश्वस्त और सधे हुए नेता को आगे कर सकते हैं। इस भूमिका के लिए अनुभव, तर्क क्षमता और सदन संचालन की समझ बेहद जरूरी है।
“तलवार की धार” पर चलना है ये जिम्मेदारी
विधायी एवं संसदीय कार्य मंत्री की भूमिका महज विभागीय नहीं, बल्कि सदन के भीतर सरकार की रीढ़ मानी जाती है। पिछली कुछ कार्यवाही और सत्रों के अनुभव बताते हैं कि यह जिम्मेदारी उस व्यक्ति को दी जानी चाहिए जो न केवल विपक्ष के हमलों का तार्किक उत्तर दे, बल्कि उन्हें पलटकर जवाबी तीर चलाने की क्षमता भी रखता हो।
इस भूमिका में ज़रा सी ज़ुबान फिसलने से सरकार को राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ सकती है। बीते सत्र में विपक्ष ने सटीक मौकों पर सरकार को बैकफुट पर धकेलने में सफलता भी पाई थी।
कौन बन सकता है सदन में सरकार की ढाल?
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि मुख्यमंत्री के विश्वस्त और अनुभवी चेहरों में कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज, डॉ. धन सिंह रावत और सुबोध उनियाल के नाम सबसे प्रमुखता से लिए जा रहे हैं। ये तीनों न सिर्फ वरिष्ठता में मजबूत हैं, बल्कि सदन के भीतर बहस और प्रक्रियाओं की जानकारी भी रखते हैं। हालांकि, अंतिम निर्णय मुख्यमंत्री धामी को ही लेना है।
सत्र की तारीख और स्थान तय करने का अधिकार भी सीएम को
राज्य मंत्रिमंडल पहले ही मानसून सत्र को लेकर मुख्यमंत्री को अधिकृत कर चुका है। वह ही सत्र की तारीख और स्थान तय करेंगे। आमतौर पर यह सत्र अगस्त के पहले या दूसरे सप्ताह में देहरादून में आयोजित होता है।
विपक्ष तैयार, सरकार भी मजबूत रणनीति की तलाश में
सूत्रों की मानें तो विपक्ष इस बार भी सरकार को कई मुद्दों पर घेरेगा – बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार, और विकास कार्यों की धीमी रफ्तार जैसे विषय प्रमुख रह सकते हैं। ऐसे में सदन के भीतर विपक्ष के सवालों को झेलने और सरकार की छवि को बचाए रखने के लिए एक मजबूत, तर्कशील और संयमित मंत्री की तलाश सरकार के सामने चुनौती बनी हुई है।
क्या धामी खुद उतरेंगे मैदान में, या ढूंढेंगे नया रणबांकुरा?
ये सवाल अभी अनुत्तरित है, लेकिन इसका जवाब आने वाले दिनों में तय करेगा मानसून सत्र में सरकार की रणनीतिक दिशा।