देहरादून/टिहरी, 27 जुलाई 2025
टिहरी बांध परियोजना के विस्थापितों को पुनर्वास के तहत आवंटित भूमि में भारी अनियमितताओं का पर्दाफाश हुआ है। जिलाधिकारी सविन बंसल ने मामले को गंभीर मानते हुए सिंचाई सचिव को पत्र भेजकर विजिलेंस या CBCID जांच की सिफारिश की है।
घोटाले का खुलासा तब हुआ जब जनसुनवाई में पुलमा देवी नाम की महिला ने अपनी ज़मीन के दोहरे आवंटन की शिकायत दर्ज कराई। इसके बाद एक के बाद एक तीन बड़े मामलों में घपले सामने आए हैं।
मामला 1: पुलमा देवी का दोहरा ज़मीन आवंटन प्रकरण
- वर्ष 2007: शास्त्रीपुरम, तपोवन निवासी पुलमा देवी ने बांध विस्थापित चंदरू से फूलसनी क्षेत्र में 200 वर्गमीटर भूमि खरीदी थी।
- वर्ष 2019: आश्चर्यजनक रूप से वही भूमि पुनर्वास विभाग द्वारा दोबारा चंदरू के नाम आवंटित कर दी गई।
- मामला सामने आने के बाद जिलाधिकारी ने इसे गंभीर प्रशासनिक लापरवाही करार दिया।
मामला 2: विकासनगर के अटकफार्म में फर्जीवाड़ा
- वर्ष 2017 में अटकफार्म क्षेत्र में विस्थापितों सुमेर चंद्र और हेमंत कुमार को भूखंड आवंटित किए गए।
- लेकिन राजस्व रिकॉर्ड में यह ज़मीन लक्ष्मी देवी, हेमंत कुमार पांडे और शैलेंद्र कुमार के नाम पर दर्ज पाई गई।
- वहीं ज़मीन पर कब्जा कुंदन लाल जोशी का निकला, जिससे साफ हुआ कि यह पूरा मामला जालसाजी और दस्तावेजी हेराफेरी का है।
मामला 3: अजबपुर कलां में दोहरी बुकिंग का खुलासा
- वर्ष 2004 में नई टिहरी निवासी इरशाद अहमद को 100 वर्गमीटर की भूमि दी गई थी।
- लेकिन 2005 में वही ज़मीन फतरू नामक दूसरे व्यक्ति को भी आवंटित कर दी गई।
- वर्षों की शिकायत के बाद यह आवंटन आखिरकार 2024 में निरस्त किया गया।
प्रशासन का सख्त रुख, व्यापक जांच की मांग
जिलाधिकारी सविन बंसल ने राज्य सरकार को भेजे पत्र में कहा है कि इन मामलों से यह स्पष्ट है कि भूखंड आवंटन प्रक्रिया में बड़े स्तर पर गड़बड़ियां हुई हैं, जिससे विस्थापितों को उनका हक नहीं मिल पाया।
अब यह मांग उठ रही है कि इस पूरी प्रक्रिया की जांच राज्य विजिलेंस या सीबीसीआईडी जैसी स्वतंत्र और निष्पक्ष एजेंसी से कराई जाए।
क्या कहती हैं विस्थापितों की आवाज़?
विस्थापित परिवारों का कहना है कि—
- “हमने टिहरी छोड़ दी, लेकिन अपने हक की ज़मीन आज तक नहीं पाई।”
- “कुछ लोगों ने दो बार लाभ लिया, जबकि हम दर-दर भटकते रहे।”
इन आवाजों ने प्रशासन और समाज दोनों को झकझोर कर रख दिया है।
अब क्या हो सकता है अगला कदम?
- पुनर्वास विभाग की सभी ज़मीनों की री-ऑडिट
- डिजिटल रिकॉर्ड की अनिवार्यता
- दोषी अधिकारियों के विरुद्ध एफआईआर व निलंबन
- फर्जी लाभार्थियों से ज़मीन वापसी और वसूली
निष्कर्ष: विस्थापन के नाम पर हुआ अन्याय, अब वक्त है न्याय का
टिहरी बांध से विस्थापित परिवारों के पुनर्वास में यह सामने आया घोटाला न सिर्फ सिस्टम की खामियों को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि वास्तविक पीड़ित आज भी हाशिए पर हैं। अब यह देखना होगा कि सरकार और प्रशासन इस मामले में कितनी तेजी और पारदर्शिता से कार्रवाई करता है।