नैनीताल, 18 सितंबर 2025
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक अहम और ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि यदि कोई पुरुष अपनी पहली शादी को छिपाकर किसी महिला से दूसरी शादी करता है और उसके आधार पर यौन संबंध बनाता है, तो यह कृत्य दुष्कर्म (रेप) की श्रेणी में आएगा। कोर्ट ने इसे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 की चौथी परिभाषा के तहत “भ्रमित सहमति” करार दिया।
देहरादून निवासी महिला ने दर्ज कराई थी FIR
मामला देहरादून की एक महिला से जुड़ा है। महिला ने सितंबर 2021 में एफआईआर दर्ज कराई थी कि अभियुक्त सार्थक वर्मा ने अपनी पहली शादी छुपाकर 24 अगस्त 2020 को उससे हिंदू रीति-रिवाज से विवाह किया।
शादी के बाद उस पर दहेज की मांग, मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना के आरोप लगे। महिला ने आरोप लगाया कि विवाह के बाद यौन शोषण भी किया गया। बाद में उसे पता चला कि सार्थक पहले से शादीशुदा है।
गंभीर धाराओं में दर्ज हुआ केस
महिला की शिकायत पर सार्थक वर्मा के खिलाफ 498ए, 494, 377, 323, 504, 506 आईपीसी और दहेज प्रतिषेध अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया गया।
बाद की जांच में कुछ धाराएं हटा दी गईं, लेकिन नए जांच अधिकारी ने मामले की गंभीरता देखते हुए धारा 375(4), 376, 493, 495 और 496 जैसी गंभीर धाराएं जोड़ दीं।
अभियुक्त ने दी दलीलें, पर नहीं मिली राहत
सार्थक वर्मा ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि पुलिस जांच निष्पक्ष नहीं थी और बिना ठोस आधार के गंभीर धाराएं जोड़ी गईं।
उसने यह भी दावा किया कि महिला को पहले से उसके विवाह के बारे में जानकारी थी और पहले भी इसी तरह की शिकायत दर्ज कराई जा चुकी है।
वहीं राज्य सरकार और पीड़िता की ओर से तर्क दिया गया कि जांच के दौरान यह साबित हुआ कि अभियुक्त पहले से शादीशुदा था और उसने यह तथ्य छिपाकर विवाह और यौन संबंध बनाए।
हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी
न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकलपीठ ने सुनवाई करते हुए कहा:
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यदि कोई महिला यह मानकर यौन संबंध बनाती है कि वह अभियुक्त की विधिवत पत्नी है, लेकिन वास्तव में पुरुष पहले से विवाहित है, तो महिला की सहमति वास्तविक नहीं मानी जाएगी।
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इस तरह की सहमति “भ्रमित सहमति” है और इसे बलात्कार (रेप) माना जाएगा।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट और अन्य उच्च न्यायालयों के पुराने फैसलों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि पहली शादी छिपाना और फिर शादी व शारीरिक संबंध बनाना गंभीर अपराध है।
याचिका खारिज, अंतरिम आदेश समाप्त
हाईकोर्ट ने माना कि इस मामले में प्रथम दृष्टया गंभीर अपराध साबित होते हैं। निचली अदालत (सीजेएम देहरादून) का आदेश सही ठहराते हुए सार्थक वर्मा की याचिका खारिज कर दी गई। साथ ही, उस पर दिया गया अंतरिम राहत आदेश भी समाप्त कर दिया गया।
निष्कर्ष
उत्तराखंड हाईकोर्ट का यह फैसला महिलाओं के अधिकारों और उनकी सहमति की परिभाषा को मजबूत करने वाला है। अदालत ने स्पष्ट किया कि विवाह जैसे संवेदनशील विषय पर धोखे से दी गई सहमति को वास्तविक नहीं माना जा सकता। यह निर्णय भविष्य में ऐसे मामलों में कानून को और अधिक सख्ती से लागू करने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा।